मातृभूमि दिवस की शुभकामनाएं..!!
लेखक समालोचना अर्थशास्त्री जगदीश लाल शास्त्री द्वारा 1968 में अर्थशास्त्री J.R Hiks की पुस्तक “सामाजिक रूपरेखा” का हिंदी रूपांतरण किया गया हैं जिस में तब के इंग्लैंड व यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था का बखान किया गया हैं। हालांकि यह पुस्तक उस दौर में हमारे मतलब की नही थी किंतु यह महसूस हो रहा हैं जैसे तब यह पुस्तक आज के पहाड़ी जनजीवन के लिए लिखी गई थी। जगदीश लाल शास्त्री पुस्तक में ग्रामीण अर्थव्यवस्था तृणमूल अर्थव्यवस्था हिमालय का एजेंडा ग्राम विकास का एजेंडा पर एक चर्चा करते हैं। पृष्ट 280 पर उत्तपत्ति की परिभाषा में आदर्श जनसंख्या के सिद्धांत पर लेखक अपने बिचार व्यक्त करते हैं।
गाँव की जनसंख्या पर गाँव का विकास निर्भर करता हैं। गाँव बहुत अधिक हैं तो विकास होने की संभावना कम हो जाती हैं किंतु गाँव का क्षेत्रफल कम हैं तो विकास हर घर तक पहुच जाता हैं छोटे गाँव में विकास की उम्मीदें अधिक होती हैं किंतु क्षेत्रफल अधिक होने से गाँव विकास में पिछड़ जाता हैं। पहले हमें यह देखना होगा कि प्रतिव्यक्ति शुद्ध उत्त्पादन का क्या अर्थ हैं। हम देखते हैं कि किसी भी सामाजिक उत्तपत्ति में एक ही वस्तु नही होती कई वस्तुएं औऱ सेवाएँ होती हैं। कहीं साथियों मे अन्य स्थितियों की अपेक्षा प्रतिव्यक्ति शुद्ध उत्तपत्ति अधिक होती हैं। यदि ग्रामीण प्रति व्यक्ति आय पर ध्यान केंद्रित किया जाय तो देश में वैशिक सुधार आएंगे। गाँव का विकास 3 चीजों पर निर्भर करता हैं जंगल,नदी,जल इन तीनों चीजों से गाँव में आर्थिक सुधार आता हैं यदि गाँव को खुशहाल बनाना है तो आर्थिक मजबूती लानी होगी। स्वावलंबन के लिए गाँव जंगल,पानी,नदी के नजदीक होना चाहिए। विकास के प्रथम आवश्यकता भूमि होती हैं और भूमि के बिना भी विकास की कोई कल्पना नही हो सकती हैं। इस लिए लेखक भूमि को विकास का मानक मानते हैं। उन का कहना हैं कि जिस समाज के पास खनिज तत्वों वाला भूमि हैं या उपजाऊ भूमि हैं वह समाज हर क्षेत्र में मजबूत होता जाता हैं जैसे आरव के देशों को हम आज इस श्रेणी में रख सकते हैं। जिन देशों के पास अपने बहुमूल्य वन हैं वे आर्थिकरूप सम्पन्न हैं जिस के पास नदी पोखर झरने तालाब है उन के पास विकास के अनेकों आयाम हैं। इस लिए विकास की प्रथम आवश्यकताओं में इन चार सम्पदाओं के साथ भूमि को रखा गया हैं।
लेखक कहते हैं बदलते समाज में अनेकों वर्षों तक भले बुरे का अहसास नही होता। लेखक जब इस पुस्तक को लिख रहे थे वह दौर स्विट्जरलैंड के जन्म का दौर था यहूदियों के दमन का दौर था। स्विट्जरलैंड प्रवासियों से बना एक देश हैं जो अन्य देशों से प्रवासियों के बसाया देश हैं। लेखक कहते हैं घर से दूर निकल कर ही हमें वास्तविकता का बोध होता हैं अमरत्व को पानी की चाह में हम अपना भविष्य खो देते हैं किंतु बदलते समाज के साथ यदि हम से सही बदलाव कर दिए तो अमरत्व प्राप्त हो जाता हैं पर यह सभी को नही कुछेक को ही होता हैं। पलायन एक मुद्दा नही विकास एक विषय हैं पलायन से कोई देश गाँव नष्ट नही हुए। समाज में बदलाव हुए संस्कृति का आदानप्रदान हुआ बोलीभाषा खानपान परिधानों का प्रचात हुआ। मुद्दा पलायन नही हैं मुद्दा विकास हैं यदि पलायन के बाद भी प्राणी की स्थिति यथावत हैं तो यह पतन का मुख्य कारण है लेखक कहते हैं समाज के विकास हेतु पलायन का स्वागत हैं। तृणमूल इकॉनमी के लिए पलायन आवश्यक हैं। ग्रामीण समाज का अधिकार पलायन हैं यदि सरकारों की नीतियों में गाँव कहीं खो गया हैं। पलायन जटिल मुद्दा नही हैं किंतु नीतियों में अंतिम व्यक्ति होना जरूरी हैं। गाँव के विकास के बिना देश विकास संभव नही हैं गाँव से देश बना हैं देश किसी भौगोलिक सीमाओं का नाम नही हैं देश व्यक्तियों के इस समूह को कहते हैं। जहां प्रेम समर्पण सम्बेदना आत्मनिर्भरता खुशाली स्वावलंबन हो। उसे गाँव का दर्जा मिला है और अनेकों गाँव से मिल कर देश बनता हैं।
लेखक गाँव को आत्मनिर्भर होने के लिए अनेकों उपाय बताते हैं जिस में स्थानीय संसाधनों का दोहन मुख्य हैं। लेखक कहता है यदि कोई गाँव आत्मनिर्भर नही तो उस गाँव में अनेकों परिवार ऐसे होंगे जो परस्पर बातें नही करते होंगे। जब लोगों के पास काम नही तो उन के पास झगड़ा करने का बहुत समय हैं जलन द्वेष हीन भावना लोगों में अधिक होता हैं। यह गाँव की अखंडता को खण्डित करती हैं। चुगली लांछन गृहक्लेश मुकदमे यह उस समाज के मध्य फलीभूत होता हैं जो अधिक समय बातें करने में लगाते हैं जो समाज दिशाहीन हैं जिस समाज में निरक्षरता हैं वह समाज आर्थिक मजबूत नही हो सकता।
गाँव की मौलिकता गाँव की सुद्धता गाँव की खूबसूरती वहां के संस्कृति से हैं। गाँव की संस्कृति बोलीभाषा खानपान आभूषण परिधानों में घुसपैठ नही होना चाहिए गाँव इन्ही तत्वों से मिल कर बना होता हैं। लेखक कहते हैं गाँव को बचाना लक्ष्य होना चाहिए भाषा की सार्थकता तब सिद्ध होती हैं जब भाषा बोलने वाले भाषा के माध्यम से आर्थिकरूप से मजबूत हो। यदि भाषा आप के रोजगार का जरिया नही तो भाषा जल्द खत्म हो जाती हैं इसी प्रकार से यदि गाँव आप के आर्थिकी का साधन नही बन सकता तो गाँव खत्म हो जाता हैं अंतिम व्यक्ति अंतिम पंगत में खड़ा रहेगा और धीरे धीरे दुर्लभ होता जाएगा। जिस से गाँव का निर्माण होना था उस को केन्द्र इन नही रखा गया इस लिए विकास का धुर्वीकरण शहर हुआ। गाँव अंतिम व्यक्ति की जरूरत हैं गाँव आधे अवाम की प्रथम पूर्ति करता हैं। इसी लिए आज 2021 में भी जल जंगल जमीन व जवानी की लड़ाई सिर्फ गाँव वाले लड़ रहे हैं। जहां का जल जंगल जमीन व जवान व्यर्थ होता हैं वहां की अर्थव्यवस्था चौपट हो जाती हैं
देवेश आदमी