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गांवो मे लोकतंत्र,— पंचायती राज का बदनुमा चेहरा लोकतंत्र के नाम पर कोढ़ है ….

” जितने हरामखोर थे जर्रो- जवार में, परधान , ब्लाक प्रमुख और जिला पंचायत शिरोमणि बनकर छा गये पहली कतार में”

शिक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर वे एक पैसा भी खर्च करना गुनाह समझते हैं। इन जंजीरों में जकड़ा समाज जड़ता, अज्ञानता और दकियानूसी विचारों का गुलाम बनकर रह गया है। एक प्रगतिशील समाज, आधुनिक राजनीतिक और सांस्कृतिक चेतना बोध की तो वे कल्पना भी नहीं कर सकते। बजबजाते नाली में सूअर की तरह आनंद मना रहे ऐसे लोग असंतुष्ट मानव बनने की अपेक्षा संतुष्ट सूअर बनना ही ज्यादा पसंद करते हैं। ऐसे सूवरों का एक बाबा साहब नहीं हजार बाबा साहब पैदा हो जायं, तब भी बिष्टा मे लोटना और खाना नही जायेगा। ५ साल मे एक बार इनके लिये कुछ दिनों के लिये रामराज्य जरूर आता है, जिसमे इनको भरपूर दारू, मुर्गा, अनाज मिलता है, वोट खतम होते ही ये फिर उसी सूवर बाड़ें मे ढकेल दिये जाते हैं अगले ५ साल के लिये ।

इंसान केवल शोहरत का मोहताज होता है। वह दुसरों की बुराई जरूर करता है लेकिन अपनी केवल तारीफ़, वाहवाही, शाबासी ही सुनना पसंद करता है। हर व्यक्ति इस दुनिया में जन्म लेकर आता है और किसी न किसी चीज़ से असंतुष्ट भी होता तथा उसे बदलने, सुधारने की नीयत भी रखता है लेकिन आसानी से बदल अपने घर,परिवार को भी नहीं पाता है।

हर व्यक्ति के जीवन में कुछ न कुछ रहस्य होते हैं और हर घर, परिवार की कुछ रहस्यमयी बातें होती है। हम उनपर बात नहीं कर पाते इसलिये हमारे अंदर असहमति या अलगाव जन्म लेती है। जैसे मनुष्य अपने विचारों का दायरा बढ़ाता है वैसे वैसे वह पाता है कि व्यक्ति, घर, परिवार, क्षेत्र, राज्य, देश सभी जगहों पर यह समस्याएं विधमान हैं। घर के बंटवारे हों या राज्य तथा देश के जरूर कुछ न कुछ ऐसा पनपता है जिसपर हमने समय रहते विमर्श नहीं किया होता है। कुछ मामले राष्ट्रीय हो जाते हैं तो कुछ चार दिवारी के भीतर दम तोड़ देते हैं। शुरुआत में कोई भी समस्या बड़ी नहीं होती है इसलिये जब भी समस्या पनपती दिखे उसपर सभ्यता और शालीनता से मंथन करने में कोई बुराई नहीं।

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एक और बात, हमें हमेशा लगता है कि मैं, मेरा परिवार, मेरी व्यवस्था, मेरा धर्म, मेरा कर्म ही केवल श्रेष्ठ अथवा सटीक हैं लेकिन हमारी कमियों को बाहरी लोग अधिक जानते, समझते हैं। लोग क्या सोचते हैं भले ही हमें उसका फर्क न पड़े मगर यह सत्य है कि हमारी सबसे ख़राब बातें कभी हम तक नहीं पहुंचती। यदि बेहतर बनना है तो उन कमियों को जानें, स्वीकार करें और उससे सीखकर अपनी दुनिया जरूर बदलेगी। आंखिर हम भारत के वासी हैं।