कितने काम की “चार धाम परियोजना…???”
उत्तराखंड में पिछले सिर्फ़ पांच सालों में ही 7000 सड़क दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। इन दुर्घटनाओं में 5 हजार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है और करीब इतने ही लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं।
सिर्फ़ इस साल की ही बात करें तो 2022 के शुरुआती चार महीनों में ही क़रीब 500 सड़क दुर्घटनाएँ में 300 से ज़्यादा लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है जबकि 450 लोग घायल हुए हैं।
इस आँकड़े की तुलना अगर हम प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मौतों से करें तो इसकी भयावहता को और भी गम्भीरता से समझा जा सकता है। उत्तराखंड प्रदेश प्राकृतिक आपदाओं के लिए भी चर्चा में रहता है। यहां हर साल सैकड़ों लोग इन आपदाओं की चपेट में आते हैं। State ऑपरेशन इमरजेंसी सेंटर के आँकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में हर साल औसतन 128 लोग प्राकृतिक आपदाओं से चलते मारे जाते हैं। जबकि सड़क दुर्घटनाओं में जान गँवाने वालों की संख्या इससे क़रीब आठ गुना ज्यादा है। पिछले पाँच सालों में औसतन एक हजार लोगों ने हर साल ऐसी दुर्घटनाओं में जान गँवाई है।
उत्तराखंड की पहाड़ी सड़कों पर दुर्घटनाएं पहले भी होती रही हैं। लेकिन बीते कुछ सालों में इनमें जो तेजी आई है, उसके पीछे विशेषज्ञ कुछ कारणों को अहम मानते हैं। इनमें से एक बड़ा कारण All Weather Road Project को भी माना जाता है।
क़रीब 12 हजार करोड़ रुपए की यह योजना कई कारणों से विवादों में रही है। पहला विवाद तो इससे तभी जुड़ गया था जब 889 किलोमीटर की इस सड़क योजना को EIA यानी Environmental Impact Assessment से बचाने के लिए 53 अलग-अलग “Civil Projects” में बांट दिया गया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि सौ किलोमीटर से बड़ी किसी भी परियोजना के लिए EIA जरूरी होता है। फिर All Weather Road Project तो 889 किलोमीटर का था। लेकिन इसे एक परियोजना न दिखाकर 53 अलग-अलग परियोजना में बांट दिया गया ताकि EIA को पूरी तरह से उपमार्ग किया जा सके।
विख्यात इतिहासकार शेखर पाठक के अनुसार, “हिमालय और प्रकृति के प्रति हमारे पूर्वज हमसे कहीं ज्यादा दूरदर्शी और जागरूक थे। आज से हजारों साल पहले, जब आधुनिक मशीनों का निर्माण नहीं हुआ था, उन्होंने तब 12 हजार फीट की ऊंचाई पर केदारनाथ जैसा विशाल मंदिर बना दिया था। जब वे लोग ऐसा भव्य मंदिर वहां बना सकते थे तो बाक़ी के निर्माण कार्य भी कर ही सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। मंदिर आस्था का केंद्र था और लोग पैदल वहां दर्शन के लिए पहुंचा करते थे। लेकिन आज हमने केदारनाथ मंदिर के आसपास पूरा बाजार बना दिया है। मंदिर तक पहुंचने के लिए सीधे हेलीकॉप्टर तैनात हैं। यह बताता है कि हम हिमालय की संवेदनशीलता को नहीं समझते। चारधाम परियोजना तो इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।”
आदित्य राज