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मुसीबत बन रहे आवारा सांड

शहर में आवारा पशु खास कर सांड शहरवासियों के लिए मुसीबत साबित हो रहे है। नगरपरिषद की उदासीनता एवं सभापति व आयुक्त की शहर के लोगों के प्रति बेरूखी के कारण आये दिन सांड के हमलों से लोग चोटिल हो रहे है। शहर के बस स्टैण्ड, टैक्सी स्टैण्ड, चौक बाज़ार, गोमती पुल, सरयू पुल, सिनौला सहित शहर के प्रमुख बाजारों व गलियों में हर वक्त सांडो के खड़े रहने के कारण भयभीत लोग बाजार आने से पूर्व कतराते है। व्यापारियों ने बताया कि आवारा सांडो का इतना आंतक है कि ग्राहक दुकान पर खड़े होने से भी डरते है। वहीं सांडो की लडाई में कई वाहन चालकों को नुकसान भुगतान पड़ा है। इससे पूर्व सांडो के हमले से एक-दो जने अपनी जान गंवा चुके है और दर्जनों घायल हो चुके हैं।

आपने कभी करिश्माई कृष्ण और क्रोधी सांड की कहानी सुनी है, यदि आपका जवाब ना है तो चलिए साथ मिलकर इस कहानी का आनन्द लेते हैं। मैंने भी कुछ दिन पहले ही इस कहानी का आनन्द लिया था। आज बाज़ार में एक सांड के रवैये को देख अनायास ही मुझे वह कहानी की एक-एक बात किसी विडियो की तरह मेरे सामने घूमने लगी। सोचा इसे आप सभी साथियों के सम्मुख प्रस्तुत करूँ। आपको कैसी लगी अवश्य अपनी प्रतिक्रिया के साथ अवगत कराएँ ——

भगवान श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी ऐसी अनेक घटनाएं और लीलाएं हैं जिनसे उन्होंने लोगों को जबर्दस्त तरीके से प्रभावित किया। उन्होंने एक बार जो ठान लिया, उसे पूरा करके ही दम लिया। अपने प्रेम से भरे आचरण के जरिये उस क्रोधी सांड हस्तिन को काबू करने की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।

जब वह 14 या 15 साल के थे, तो एक घटना हुई। वृंदावन में एक प्रजनक सांड था। ये सांड स्वभाव से बेहद आक्रामक और हिंसक था। इस सांड का नाम था ‘हस्तिन’, जिसका मतलब है कि वह हाथी की तरह था। वह बहुत बड़ा और ताकतवर था, इतना आक्रामक था कि हर वक्त लड़ने को तैयार रहता। लोगों ने उसे इसलिए रखा हुआ था क्योंकि वह वृंदावन की तमाम गायों के लिए प्रजनन का साधन था। वह इतना हिंसक था कि किसी की उसके पास जाने की हिम्मत नहीं होती थी।

कृष्ण के बड़े भाई बलराम अपनी आयु के तमाम बच्चों से कहीं ज्यादा शक्तिशाली थे। वे विशाल शरीर वाले असाधारण मानव थे। उनके जीवन में आई कई परिस्थितियों से यह पता चलता है कि वह एक साधारण इंसान की तुलना में कहीं ज्यादा बलवान और शक्तिशाली थे। बलराम हमेशा कुछ करना चाहते थे। वैसे भी जिन लोगों के पास शारीरिक ताकत ज्यादा होती है, वे कुछ न कुछ करना चाहते हैं। बलराम के पास भी शारीरिक शक्ति थी तो वह भी कुछ करना चाहते थे। वह कसकर व्यायाम करते थे और जमकर खाना खाते थे। वह और ज्यादा शक्तिशाली होना चाहते थे। एक दिन ऐसे ही उन्होंने कह दिया कि मैं इतना शक्तिशाली बनना चाहता हूं कि एक ही मुक्के में हस्तिन को मार डालूं।

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यह कोई ऐसा सपना नहीं था जिसे पूरा न किया जा सके। बहुत से युवक इस तरह का सपना देखते हैं कि एक ही मुक्के में वे सामने वाले को धूल चटा दें। इसी तरह बलराम भी सोचते थे कि एक ही मुक्के में वह उस हिंसक और आक्रामक सांड हस्तिन को मार गिराएं। कृष्ण ने मुस्कराकर बलराम से कहा, ‘आप उसे एक ही मुक्के में मार डालना चाहते हैं। वैसे भी आप ऐसा नहीं कर सकते और अगर आपने ऐसा कर भी दिया तो भी इसका कोई लाभ नहीं है। मैं हस्तिन की सवारी करूंगा।’ कृष्ण की इस बात पर लोग हंसने लगे। तमाम युवक कहने लगे, ‘ये कुछ नहीं, बस डींगें मारता है। हस्तिन की सवारी कोई नहीं कर सकता। वह बहुत खूंखार है। ‘कृष्ण ने कहा, ‘मैं उसकी सवारी करने जा रहा हूं।’

पूर्णिमा की शाम थी। सभी ने खूब झूमकर नृत्य किया था और अब वे थककर बैठे थे और शेखी मार रहे थे। कृष्ण ने कहा, ‘अगली पूर्णिमा तक मैं हस्तिन की सवारी करके दिखा दूंगा।’ ऐसी बातें होती रहती हैं। पर लोग उन्हें सिर्फ कोरी बातें मानकर भूल जाते हैं और इस तरह से जिंदगी चलती रहती है। धीरे-धीरे दिन गुजरते गए। पूर्णिमा आने में अब बस कुछ ही दिन बचे थे। बलराम ने कृष्ण को हस्तिन वाली बात याद दिलाते हुए कहा, ‘तुमने तो कहा था कि अगली पूर्णिमा तक तुम हस्तिन पर सवारी करके दिखाओगे। अब क्या हुआ? मुझे तो नहीं लगता कि तुम ऐसा कर पाओगे।’ कृष्ण ने कहा, ‘मैं अब भी अपनी बात पर कायम हूं कि मैं पूर्णिमा तक हस्तिन की सवारी करके दिखा दूंगा।’ बलराम बोले, ‘तुमने लंबी चौड़ी डींगें तो हांक दीं, लेकिन अब तुम घबरा रहे हो कि तुम यह काम कर नहीं पाओगे। अब तो तुम पिछले कुछ समय से गायब भी रहते हो। हर शाम हम यहां मिलते हैं। तुम कहां रहते हो? तुम बचना चाहते हो और मुझे पूरा विश्वास है कि जब पूर्णिमा का दिन आएगा तो तुम हमें मिलोगे भी नहीं।’ कृष्ण ने दृढ़ निश्चय के साथ कहा कि ‘मैं हस्तिन की सवारी करके दिखाऊंगा’। वहां मौजूद सभी युवक यह सुनकर डर गए कि अब बात गंभीर हो गई है। अब ये महज बातें नहीं रहीं। पहले उन्हें लगता था कि ये सब बातें मजाक में हो रही हैं।

इस पूरे माह के दौरान कृष्ण ने एक काम किया। वह हर रोज उस स्थान पर जाते जहां हस्तिन को एक पेड़ से बांधकर रखा गया था। केवल दो लोग जो उसके बचपन के साथी थे, उस सांड के पास तक जा पाते थे। दरअसल, इन दो लोगों को ही हस्तिन अपने समीप आने देता था। इन दो लोगों के अलावा जब भी कोई और हस्तिन के पास जाता, तो वह हिंसक हो उठता था। कृष्ण वहां गए और उन्होंने कहा कि ‘मैं हस्तिन के पास जाना चाहता हूं।’ उन दोनों ने कहा, ‘हम तुम्हें उसके पास नहीं जाने देंगे। अगर तुम्हारे पिताजी को पता चल गया और तुम्हें कुछ हो गया तो वह हमें मार डालेंगे।’ कृष्ण ने जिद की, ‘नहीं, मुझे उसके पास जाना है।’ वह वहां गए और उससे थोड़ी दूर बैठ गए। कृष्ण को देखते ही हस्तिन अपने पैरों से जमीन खोदने लगा और गुस्से से भर गया। किसी भी नए आदमी को वह बर्दाश्त नहीं कर सकता था। वह फौरन उस पर हमला करना चाहता था। बलराम के सपने की तरह उसका भी सपना था कि एक ही वार से वह हर किसी को धूल चटा दे। वह भी किसी योद्धा से कम थोड़े ही न था। खैर, कृष्ण आराम से वहां बैठ गए। उन्होंने अपनी बांसुरी निकाली और बजाने लगे। वह रोज वहां जाते और घंटों बांसुरी बजाते। धीरे-धीरे सांड विनम्र होने लगा। इस बात से उत्साहित होकर एक दिन कृष्ण ने चारे में गुड़ मिलाकर उसे दूर से ही खिलाया। इस तरह धीरे-धीरे वह बैल के और करीब आते गए और एक दिन ऐसा आया, जब उन्होंने उस सांड के समीप जाकर बांसुरी बजाई और उसे अपने हाथों से स्पर्श किया। एक माह में उन्होंने हस्तिन के साथ दोस्ती कर ली। इस उद्देश्य के लिए वह रोजाना कोशिश कर रहे थे, लेकिन इसके बारे में किसी को पता नहीं था।

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पूर्णिमा आई। कृष्ण ने कहा, ‘मैं हस्तिन की सवारी करने जा रहा हूं।’ बलराम और कुछ और दोस्त वहां मौजूद थे। उन्होंने कहा, ‘हम अपनी शर्त वापस लेते हैं। तुम चिंता मत करो। तुम्हें उस पर सवारी करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हम तुम्हें मृत नहीं देखना चाहते।’ कृष्ण ने दोहराया, ‘मैं हस्तिन की सवारी करने जा रहा हूं। आप लोग मेरे साथ आएं। ‘कृष्ण का चचेरा भाई और उनका प्रिय मित्र उद्धव भी डर गया। उसे लगा कि इस पागलपन और जोखिम से भरे काम को करने के चक्कर में कृष्ण की जान चली जाएगी। वह किसी भी कीमत पर उन्हें रोकना चाहता था। वह भागा-भागा राधे के पास गया और राधे को उसने पूरी बात बता दी कि कृष्ण ऐसा जोखिम भरा काम करने जा रहा है। वह खुद अपनी मौत को बुला रहा है। राधे भावुक हो गईं और दौड़ती हुई कृष्ण के पास आईं। राधे ने कृष्ण से कहा कि मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर हस्तिन की सवारी नहीं करने दूंगी। कृष्ण ने कहा, ‘मैं हस्तिन की सवारी करने जा रहा हूं। बस।’ राधे ने कहा, ‘ऐसा नहीं हो सकता। अगर तुम हस्तिन की सवारी करके अपनी जान देना चाहते हो तो मैं भी हस्तिन की सवारी करूंगी और अपनी जान दे दूंगी । मैं तुम्हें यह सब अकेले नहीं करने दूंगी।’

कृष्ण ने भरपूर कोशिश कर ली लेकिन राधे ने उन्हें जाने नहीं दिया। कृष्ण ने कहा, ‘ठीक है, तुम इंतजार करो। पहले मुझे उसके समीप जाने दो। कुछेक लोगों के साथ कृष्ण हस्तिन के समीप गए। जैसे ही हस्तिन ने इतने सारे लोगों को देखा, वह अंदर ही अंदर गुस्से से उबल पड़ा और हिंसक हो उठा। कृष्ण ने अपने साथियों से दूर रहने को कहा, खुद उसके समीप गए और बांसुरी बजाने लगे। इसके बाद उन्होंने सांड को खाने के लिए मीठी चीजें दीं। धीरे-धीरे वह उसके और निकट पहुंच गए। फिर उन्होंने राधे को इशारा करके कहा कि मेरे पीछे आ जाओ और ठीक ऐसे खड़ी रहो जैसे मैं खड़ा हूं। अपने पैरों को ठीक मेरे पैरों के पीछे रखना और अपने शरीर को भी ठीक मेरे शरीर के पीछे, जिससे कि हस्तिन तुम्हें न देख पाए। शिकारी हमेशा ऐसा करते हैं। आमतौर पर होता क्या है कि जानवर पैरों को देखकर पहचान जाते हैं कि उसके पीछे कितने लोग हैं।

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शुरू में हस्तिन उत्तेजित था, लेकिन धीरे-धीरे वह विनम्र और शांत होता गया। कृष्ण ने मौका ताड़ा और लपककर उसकी पीठ पर चढ़ गए और धीरे से राधे को भी ऊपर खींच लिया। कृष्ण जैसे ही हस्तिन की पीठ पर सवार हुए, वह हिंसक हो उठा और उसने भागना शुरू कर दिया। कृष्ण ने सांड की पीठ को कसकर पकड़ लिया और राधे ने कृष्ण को। उन्होंने पूरे गांव से होते हुए जंगलों तक सांड की पीठ पर सवारी की। हस्तिन लंबे समय तक दौड़ता रहा। एक वक्त ऐसा आया कि उसकी पूरी ऊर्जा खत्म हो गई। वह थककर रुक गया और घास चरने लगा। उस हिंसक सांड की पीठ पर राधे कृष्ण के सवारी करने और फिर थक चुके हस्तिन के घास चरने के इस अविश्वसनीय दृश्य को तमाम लोगों ने देखा। यह घटना लोगों के लिए एक बड़े चमत्कार की तरह थी। समय बीतने के साथ-साथ इस चमत्कार को तमाम तरीकों से बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया। दरअसल, कृष्ण थे ही ऐसे। अगर किसी काम को करने की ठान लेते तो उसे ठीक वैसे ही अंजाम देते थे जैसे उसे दिया जाना चाहिए। कोई क्या कह रहा है, इसका उन पर कोई असर नहीं होता था। उन्हें पता होता था कि उन्हें क्या करना है।

यह कोई एक घटना नहीं है। कृष्ण के जीवन से जुड़ी ऐसी तमाम घटनाएं हैं, जिन्होंने उन्हें उस समाज का एक स्वाभाविक नेता बना दिया। जब वह 15-16 साल के हुए, उस समाज के बुजुर्गों ने भी उनसे सलाह लेना शुरू कर दिया, क्योंकि उन्होंने समाज में खुद को एक नई शक्ति, प्रखर बुद्धि तथा स्पष्ट दृष्टि वाले शक्स के रूप में स्थापित कर लिया था।

किसी ने क्या खूब कहा है, भाषा शरीर का ऐसा अदृश्य अंग हैं, जिसमें मनुष्य का सब कुछ दिखाई देता है। अब मेरे शहर के आला अधिकारी व सजग जनप्रतिनिधि कब तक इस तरह का ऊर्जावान कार्य कर अपनी प्रजा को भययुक्त करने का प्रयास करेंगे?

राजकुमार सिंह परिहार