News Cubic Studio

Truth and Reality

Uttarakhand / Bageshwar : उत्तर भारत हाइड्रो पावर की सुरंग से हो रहे पानी के रिसाव से दहशत में ग्रामीण

उत्तराखंड को भारत का वाटर टैंक कहा जाता है और अब यहां सैकड़ो बांधों के निर्माण के साथ-साथ नए निर्माण की योजना बन रही है। इनमें से कुछ पर काम शुरू भी हो गया है और कुछ पर होना अभी बांकी है। भरपूर पानी वाले क्षेत्र में लोग अब पीने के पानी को तरस रहे हैं । उत्तराखंड राज्य समेत सभी हिमालयी राज्यों में सुरंग आधारित जलविद्युत परियोजनाओं के कारण नदियों का प्राकृतिक स्वरूप बिगड़ रहा है। ढालदार पहाड़ी पर बसे हुए गांवों के नीचे धरती को खोदकर बांधों की सुरंग बनाई जा रही है। इन बांधों का निर्माण करने के लिए निजी कंपनियोंके अलावा एनटीपीसी और एनएचपीसी जैसी कमाऊ कंपनियों को बुलाया जा रहा है।

राज्य सरकार इन्हीं के सहारे ऊर्जा प्रदेश का सपना भी देख रही है और पारंपरिक जल संस्कृति और पारंपरिक संरक्षण जैसी बातों को बिल्कुल भुला बैठी है। निजी क्षेत्र के पीछे वैश्विक ताकतों का दबाव है। दूसरी ओर इसे विकास का मुख्य आधार मानकर स्थानीय लोगों की आजीविका की मांग को कुचला जा रहा है। लोगों की दुविधा यह भी है कि टिहरी जैसा विशालकाय बांध तो नहीं बन रहा है, जिसके कारण उन्हें विस्थापन की मार झेलनी पड़ सकती है।
देवभूमि उत्तराखंड मे आने वाली त्रासदी कुदरती है या प्रकृति के खिलाफ विकास की सनक का नतीजा। यह कहना आसान तो नहीं पर वर्तमान हालातो का यदि पूरी ईमानदारी के साथ विस्त̢त अध्ययन करें तो मुसकिल भी नहीं है। केदारनाथ आपदा के बाद इस राज्य में अब किसी भी दूसरी बड़ी घटना को लेकर तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। राज्य और केंद्र की सरकार बचाव व राहत कार्य में चाहे जितनी भी जान लगा दे, लेकिन जब उन कारणों पर पर्दा रहेगा या समस्या का समाधान निकालने की जगह मुंह चुराया जाएगा, मान लेना चाहिए खतरा बरकरार है और ऐसी त्रासदी आखिरी नहीं।

बीते कुछ सालों से न केवल इस गांव के आसपास बल्कि पूरे कपकोट क्षेत्र में बड़े पैमाने पर जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ हुई और विस्फोट भी किए गए।

शनिवार को कपकोट में उत्तर भारत हाइड्रो पावर की सुरंग के ऊपर खारबगड़ के समीप सुरंग के ऊपर और नाचती इंटर कालेज के रास्ते के ठीक नीचे की भूमि धंसने लगी। भारी मात्रा में पानी का रिसाव भी होने लगा। घुघुलेख के ग्रामीण दहशत में आ गए। महिलाएं, बच्चे और पुरुष घटना स्थल पहुंच गए।

प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्रामीण हयात सिंह बड़ती ने उत्तर भारत हाइड्रो पावर कंपनी को इसकी सूचना दी। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। बताते हैं कि पिछले लम्बे समय से वह हर बरसात व उससे पूर्व कंपनी के अधिकारियों से वार्ता कराते आ रहे हैं, परन्तु हर बार उन्हे केवल गुमराह ही किया जा रहा है। उसके बाद पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष हरीश ऐठानी के संज्ञान मे मामला पाहुचा तो उन्होने जिलाधिकारी को फोन किया। उन्होंने कहा कि टनल के ऊपर की जमीन धंस रही है। भारी मात्रा में पानी भी निकल रहा है। जिससे ग्रामीणों को जान-माल का खतरा बना हुआ है। इससे लगभग 500 की आबादी को अपनी जान-माल का खतरा हो गया है।

See also  Uttarakhand / Haridwar : Plantation done in BHEL on the occasion of Harela festival

नगर पंचायत अध्यक्ष गोविंद बिष्ट ने बताया कि उसी स्थान से वरुक-बड़ेत निर्माणाधीन सड़क भी है। जिसमें भी लगातार भूस्खलन हो रहा है। उन्होने कहा कि इस तरह की लापरवाही को किसी भी सूरत मे स्वीकार नहीं किया जायेगा। उन्होने जिला प्रशासन से ग्रामीणों की सुरक्षा की गुहार लगाई। इधर, ग्रामीण प्रेमा देवी, दानुली देवी, सुमति देवी, दरवान सिंह, शेर सिंह, नरेंद्र सिंह आदि ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने की मांग की है।

यदि हम बात कराते हैं तो इस दौर में ज्यादातर शेष समाज के लिए ये त्रासदियां सिर्फ फेसबुक-वाट्सएप पर इनसे जुड़े वीडियो देखकर रोमांचित और बहुत हुआ तो दुखी या आक्रोशित होने का सबब हैं। अगर ऐसा न होता तो इन आपदाओं के बाद हम ठिठकते और फिर ठहरकर सोचते कि आगे क्या किया जाए, जिससे जान-माल का ऐसा नुकसान न हो।

भूगर्भशास्त्र के हिसाब से हिमालय का जो स्वभाव है, उसके हिसाब से वह निरंतर बदल रहा है। सवाल है कि हम कब बदलेंगे?

पहले हम ऐसे नहीं थे। हमारे पुरखे मानते थे कि ऊंचे हिमालयी इलाकों में इंसानी दखल कम से कम होना चाहिए। वे ऐसा मानते ही नहीं थे बल्कि अपने बरताव में इसका ख्याल भी रखते थे। जैसे बुग्यालों में जाने के ये अलिखित कायदे थे कि वहां जोर-जोर से न बोला जाए। बताते हैं कि आधी सदी पहले तक यात्री गौरी कुंड से सुबह-सुबह निकलते थे और 14 किलोमीटर दूर केदारनाथ के दर्शन करके शाम तक वापस आ जाते थे।

करोड़ों लोगों का जीवन चलाने वाली गंगा-यमुना जैसी सदानीरा नदियों के स्रोत जिस हिमालय में हैं उसे कम से कम छेड़ा जाए। कहते हैं कि हिमालय में देवता विश्राम करते हैं, तो उन्हें क्यों डिस्टर्ब किया जाए?

लेकिन जिन इलाकों में जोर से न बोलने तक की सलाह थी वहां आज भयानक शोर है। सड़कों और बांधों के लिए पहाड़ों के परखच्चे उड़ाते डायनामाइट के इस शोर ने प्रकृति की नींद में खलल पैदा कर रखा है।

See also  Madhya Pradesh / Damoh: Parrot disappeared… Dozens of posters in search of search, owner also got an announcement with rickshaws, unhappy family did not eat anything for three days

पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील इलाकों में नदियों का रास्ता मारकर बेपरवाही से बना दिए गए बांध हों या जगह-जगह प्लास्टिक की बोतलों और थैलियों के अंबार, यह सब बताता है कि एक समाज के तौर पर हमें खुद को सुधारने की जरूरत है। नहीं सुधरेंगे तो यह परिमार्जन देर-सबेर प्रकृति खुद कर लेगी, और वह कितना क्रूर हो सकता है यह हम केदारनाथ से लेकर ऋषि गंगा त्रासदी तक देख ही रहे हैं।

♦️जलवायु परिवर्तन या मानव निर्मित आपदा?
विशेषज्ञ पिछली आपदाओं के पीछे भले ही जलवायु परिवर्तन प्रभाव और विनाशकारी मौसमी घटनाओं (एक्सट्रीम वेदर ईवेंट्स) को वजह मान रहे हैं लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि बर्बादी की कहानी यहां चल रहे “बेतरतीब निर्माण” और हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स की वजह से है जिसमें नियमों की लगातार अवहेलना की गई है। हाशिये पर पड़े इन ग्रामीणों का कहना है कि वे कई सालों से अपने गांवों को तबाह होते देख रहे हैं और लगातार एक डर में जी रहे हैं। बागेश्वर से कोई पच्चीस किलोमीटर दूर बसा घुघुलेख (खारबगड़) गांव बर्बादी की ऐसी ही कहानी कहता है।
हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए संवेदनशील हिमालयी पहाड़ों के भीतर कई सुरंगें बिछा दी गई हैं जिनसे बिजली बनाने के लिए नदियों का पानी गुजारा जाता है। लेकिन इन सुरंगों का आकार, संख्या और इन्हें बनाने का तरीका ग्रामीणों की फिक्र और गुस्से की वजह रहा है। हयात सिंह घुघुलेख (खारबगड़) गांव के पास बने 400 मेगावॉट के हाइड्रो प्रोजेक्ट का जिक्र करते हुए कहते हैं कि सुरंगें बनाने के लिए होने वाली ब्लास्टिंग ने यहां पूरे पहाड़ को हिला कर रख दिया।

उनके मुताबिक पहले, “जब वो (कंपनी के लोग) ब्लास्टिंग करते थे, तो इतनी जोर का धमाका होता कि (पहाड़ों पर बने) हमारे मकान हिलते थे। हम शासन-प्रशासन से लड़े लेकिन हमारी अनुसनी की गई। हमने विरोध किया तो हमारी आवाज को दबाया गया।“

उधर गांव वालों को बरसात और भूकंप के वक्त अपने घरों पर बड़े-बड़े पत्थरों के गिरने और भूस्खलन का डर भी सताता है। हिमालय दुनिया के सबसे नए पहाड़ों में है और उत्तराखंड का यह इलाका भूकंप के लिहाज से अति संवेदनशील श्रेणी में है बुजुर्ग ग्रामीण दानुली देवी को डर है कि “खोखले हो चुके पहाड़ों में” अगर भूकंप आया तो उनका क्या होगा। प्रेमा देवी ने बताया, “रात को जब बरसात आती है तो हमको नींद नहीं आती। हमें लगता है कि हम अब मरे, तब मरे। पिछले साल बरसात के समय भी कितने बड़े-बड़े बोल्डर (गांव में) आए और हम मरते-मरते बचे।”

See also  Uttar Pradesh / Jhansi: Intended to go together, but the lover ran away from the station with the girlfriend's bag

♦️वैज्ञानिकों की चेतावनी का असर नहीं –
असल में लंबे समय से उत्तराखंड में हाइड्रो पावर बांधों और अब चारधाम सड़क मार्ग पर सवाल उठे हैं और यह मामला अदालत में भी गया है। साल 2013 में आई केदारनाथ आपदा (जिसमें 6,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी) के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक्सपर्ट कमेटी ने कहा कि आपदा को बढ़ाने में बड़े-बड़े बांधों का रोल था। वहीं साल 2015 में भूगर्भ विज्ञानी वाईपी सुंदरियाल समेत सात जानकारों के शोध में साफ लिखा गया कि “हिमालयी क्षेत्र और खासतौर से उत्तराखंड में मौजूदा विकास नीति और नदियों पर विराट जलविद्युत की क्षमता के दोहन का पुनर्मूल्यांकन की जरूरत है।”

रिपोर्ट में भूगर्भविज्ञानी कहते हैं, “हमने बहुत साफ लिख दिया है कि कृपा करके ऊंचे हिमालयी क्षेत्र में कोई जलविद्युत परियोजना न बनाई जाए लेकिन हमारी बात की कौन परवाह करता है?”

कुछ समय पूर्व प्रकाशित हुई एक दूसरी रिसर्च बताती है कि बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं के रिजरवॉयर जब भरते और खाली होते हैं तो रेत और गाद के मूवमेंट से पहाड़ी ढालों पर दरारें बनती हैं। रिसर्च के लेखकों के मुताबिक, “इस फिनॉमिना को ड्रॉ डाउन इफेक्ट कहा जाता है जिसके कारण बांध के ऊपर की ओर बहुत दूर तक ये दरारें पड़ती है। शोध में यह बात स्पष्ट रूप से कही गई है कि इससे ऊपरी इलाकों में बसावटों को खतरा है।”

“वहीं जिलाधिकारी विनीत कुमार ने एसडीएम कपकोट को निरीक्षण करने के निर्देश दिए। एसडीएम पारितोष वर्मा ने बताया कि भू-धंसाव और पानी का रिसाव की शिकायत के बाद तहसील स्तर पर एक टीम गठित कर मौक़े पर रवाना की गयी। साथ ही हाइड्रो पावर कंपनी को दिशा निर्देश दिए गए हैं। वहीं कानूनगो त्रिभवुन नेगी टीम के साथ वहां पहुंचकर लगातार हालातों का जायज़ा ले रहे हैं।”

“हाइड्रोपावर के अधिकारी कमलेश जोशी ने बताया कि 2016 में सुरंग बन गई थी।वह यहाँ पिछले तीन वर्षों से कार्यरत हैं। आज पहली बार इस तरह की शिकायत मिली है जो जांच का विषय है। सूचना के बाद से ही चिन्हित जगहों का लगातार मुआयना किया जा रहा है। अपने उच्चाधिकारियों से भी इस सम्बंध में बात की गयी है, भू-वैज्ञानिकों की टीम भी बुलाई गई है। उसके बाद ही रिसाव सुरंग से हो रहा है या फिर अन्य कारण हैं उसका पता चल सकेगा। कंपनी द्वारा गांव की सुरक्षा में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी।”

राजकुमार सिंह परिहार