कभी कोई नजर आये तो रुकना जरुर….
हम अक्सर देखते हैं कि सड़क किनारे इस बरसात में, बरसात के बाद चटक आयी धूप की भरी दोपहरी में कोई बैठा है। हाथ में दैनिक उपयोग की चीजें लेकर, शायद इस आस में कि कोई आये और ये ख़रीद ले।
जरूरत न भी हो तब भी बिना मोलभाव के इनसे कुछ न कुछ खरीद लें। उम्र के इस पड़ाव पर यह बजुर्ग तपती दोपहर में मजबूरी बश दो जून की रोटी कमाने आये हैं। जरूर खुद्दार होंगे तभी अपने बच्चों से पैसे नहीं मांगे न लोगों से भीख। तो फिर हमारा भी फ़र्ज़ बनता है कि बिना मोलभाव के बिना जरूरत के इनसे कुछ भी खरीद लें ताकि इनके घर का चूल्हा जल सके। ऐसे कई मजबूर लोग, बच्चे, बूढ़े, लाचार और महिलाएं सड़क किनारे या चौराहों पर कुछ न कुछ बेच रहे होते हैं। इतनी मजबूरी में भी यह लोग न तो चोरी करते हैं और न ही किसी के आगे हाथ फैलाते हैं। बेचते भी ऐसा सामान हैं जो काम आने लायक होता ही है। ज्यादातर तो सब्जियां ही बेचते हैं। इनके पास भी हरा धनियां, हरा प्याज, लौकी और गोभी है शायद प्लास्टिक की थैली में। कोई सड़क पर आया है तो जरूर कोई मजबूरी रही होगी वरना कौन है जो सड़क पर खुद आये। तो फिर हम क्यों न इनकी हेल्प कर दें। जिस भाव यह बेच रहे हैं उसी भाव खरीद लें। हम होटलों में भारी टिप दे सकते हैं। स्कूलों में खामख्वाह के फंड्स दे सकते हैं इसलिए इनकी मदद करते हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा पर इन्हें दो वक्त का खाना दवाई मिल जाएगी।
इस हरेला सहयोग का भाव मन में लेकर मनाने का मन है जो किसी पेड़ लगाने से ज़्यादा उपयोगी होगा। जिसका फल किसी को उसकी भूख मिटाने व चूल्हा जलाने के रूप में जल्द प्राप्त होगा।
राजकुमार सिंह परिहार