News Cubic Studio

Truth and Reality

कुलपति और रजिस्ट्रार की नेतृत्व में जामिया मिल्लिया इस्लामिया का शैक्षणिक और सांस्कृतिक पुनरुद्धार

b

b

डॉ. क़ुर्रतुलऐन, डॉ ओबैदुल ओला

जामिआ मिल्लिया इस्लामिया की पहचान सिर्फ एक शैक्षिक संस्था की नहीं, बल्कि एक आंदोलन, एक सपने और एक प्रतिज्ञा की प्रतिनिधि है। यह विद्यालय उस समय वजूद में आई जब भारत गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ था। उस समय देश के बुद्धिजीवियों को यह अहसास हुआ कि सच्ची स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय तब तक संभव नहीं जब तक शिक्षा को राष्ट्रीय गरिमा, आत्मनिर्भरता और संस्कृति के चेतन से न जोड़ा जाए। इसी अंतर्दृष्टि और दृढ़ संकल्प के तहत 29 अक्टूबर 1920 को अलीगढ़ की ज़मीन पर जामिआ मिल्लिया इस्लामिया की नींव रखी गई। यह कदम सिर्फ एक शैक्षिक संस्था की स्थापना नहीं था, बल्कि औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली के ख़िलाफ़ एक घोषित विद्रोह भी था। मौलाना मुहम्मद अली जौहर, हकीम अजमल ख़ान, डॉ. मुख़्तार अहमद अंसारी, मौलाना सना-उल्लाह अमृतसरी और अन्य जामिआ के संस्थापक ने अपनी दूरदर्शिता से इस सपने को हक़ीक़त में बदला।

जामिआ ने आरंभ से ही यह स्पष्ट कर दिया कि शिक्षा का मक़सद सिर्फ आर्थिक सुख या रोज़गार नहीं, बल्कि इसका असली मक़सद व्यक्तित्व निर्माण, आत्मनिर्भरता, राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक सेवा है। 1925 में दिल्ली स्थानांतरण ने जामिआ के सफ़र को नई दिशा दी और इसे राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी अलग पहचान बनाने का मौक़ा मिला। यहाँ शिक्षा सिर्फ पाठ्यक्रम तक सीमित न रही बल्कि संस्कृति, सभ्यता और विचार की आज़ादी के विकास का साधन भी बनी।

जामिआ मिल्लिया इस्लामिया की इसी उज्ज्वल परंपरा को ज़िंदा रखने के लिए हर साल 29 अक्टूबर को यौम-ए-तासीस (स्थापना दिवस) मनाया जाता है। यह दिन दरअसल उस सपने और नए अज़्म की ताज़ा याद होता है जिसकी बुनियाद पर इस विद्यालय ने अपनी पहचान कायम की। इस दिन विभिन्न शैक्षिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक कार्यक्रम जैसे विचार-विमर्श, सेमिनार, कविसम्मेलन और बहसें आयोजित की जाती हैं, जो जामिआ के बहुआयामी, जीवंत और सांस्कृतिक चरित्र को प्रकट करती हैं।

See also  Ban imposed on sale of cotton candy in Tamil Nadu, government took decision for this reason

जामिआ की कई गतिविधियों में एक बहुत महत्वपूर्ण और यादगार गतिविधि “तालीमी मेला” भी थी, जो जामिआ के वैचारिक और रचनात्मक स्वभाव की सच्ची प्रतिनिधि मानी जाती थी। इस मेले में विद्यार्थी अपनी शोधात्मक प्रयासों, वैज्ञानिक मॉडलों, साहित्यिक रचनाओं और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का प्रदर्शन करते थे। यह परंपरा सिर्फ आंतरिक गतिविधि न थी बल्कि जामिआ को उसके आस-पास की समुदाय से गहरे तौर पर जोड़ने वाला एक अर्थपूर्ण सेतु थी। इस शैक्षिक मेले के माध्यम से ज्ञान और अनुसंधान का दीपक सिर्फ जामिआ की हदों को नहीं बल्कि अपने आस-पास के परिवेश को भी प्रकाशित करता था। समय के साथ-साथ यह उज्ज्वल परंपरा धीरे-धीरे मंद पड़ गई और यौम-ए-तासीस की उत्सवों में इस मेले की ग़ैर-मौजूदगी एक ख़ालीपन के रूप में महसूस की जाती रही।

आज कुलपति प्रो. मज़हर आसिफ़ और रजिस्ट्रार प्रो. मुहम्मद मेहताब आलम रिज़वी की विचारशील नेतृत्व में जामिआ मिल्लिया इस्लामिया ने नई ऊर्जा, ताज़ा जोश और सक्रिय दिशा प्राप्त की है। दोनों विद्वानों की दूरदर्शी नेतृत्व ने यह साबित कर दिया है कि जामिआ का भविष्य सिर्फ शिक्षा की गुणवत्ता तक सीमित नहीं बल्कि उसका दायरा अनुसंधान, नवाचार और रचनात्मक पुनर्निर्माण तक फैला हुआ है। इनकी सरपरस्ती में जामिआ एक मानव-केन्द्रित, समावेशी और सहभागी संस्था के रूप में उभर रही है जहाँ शिक्षकों और विद्यार्थियों को संस्थान की असली शक्ति और आत्मा माना जाता है। कुलपति का फ़ारसी में विश्वविद्यालय के संस्थापक को श्रद्धांजलि देना या सफाई कर्मचारियों को ऑफ़िस में बुलाकर उनकी समस्याएँ स्वयं सुनना सिर्फ प्रतीकात्मक कदम नहीं बल्कि संस्थान के आंतरिक ढाँचे में मानव गरिमा, समानता और भागीदारी के मूल्यों को मज़बूत करने की रोशन मिसाल हैं।

See also  Check whether your PAN card is linked with AADHAAR card or not? this is the way

यह उल्लेखनीय है कि वर्तमान नेतृत्व प्रो. मज़हर आसिफ़ और प्रो. मुहम्मद मेहताब आलम रिज़वी जामिआ के लिए एक नए अध्याय की भूमिका निभा रहे हैं। उनकी अंतर्दृष्टि और मार्गदर्शन ने शिक्षकों, विद्यार्थियों और कर्मचारियों के दिलों में नई उम्मीदें जगा दी हैं। अपने पहले ही भाषण में कुलपति ने साफ़ कहा था कि जामिआ की असल ताक़त उसके शिक्षक और विद्यार्थी हैं, और कुलपति का पद आदेश देने वाले मुखिया का नहीं, बल्कि ऐसे मित्रवत् संरक्षक का है जो फ़ैकल्टी के विज़न को वास्तविकता का रूप दे सके।

जामिया समुदाय के लिए यह बहुत खुशी और स्वागत योग्य खबर है कि लंबे समय से रुकी वह उज्ज्वल परंपरा “तालीमी मेला” प्रो. मज़हर आसिफ़ और प्रो. मुहम्मद मेहताब आलम रिज़वी की नेतृत्व में फिर से जीवित की गई है। इस मेले के पुनरुद्धार ने जामिआ के वैज्ञानिक और सांस्कृतिक जीवन में नई जान फूँक दी है और विद्यार्थियों को अपनी क्षमताओं, रचनात्मक उपलब्धियों और शोधात्मक प्रयासों को दुनिया के सामने पेश करने का मौक़ा मिला है। इस कदम से जामिया के अतीत और वर्तमान के बीच एक सुंदर और मज़बूत सेतु स्थापित होगा और आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश मिलेगा कि परंपराएँ सिर्फ याद रखने के लिए नहीं बल्कि उन्हें आगे बढ़ाना और जीवन में उतारना ही उनकी असली इज़्ज़त है। तालीमी मेले की पुनः स्थापना इस बात की गवाह है कि जामिया अपनी पुरानी परंपराओं को नए ज़माने की उर्जा और विचारधारा के साथ ज़िंदा कर रही है और विद्यार्थियों को ऐसा मंच प्रदान कर रही है जहाँ वे अनुसंधान, नवाचार और रचनात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से जामिया की वैज्ञानिक पहचान को आगे बढ़ा सकें।

See also  Uttarakhand: NH officials' gross negligence, dozens of lives in danger

आज की जामिया वह है जहाँ आधुनिक शोध, नवाचार और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को विश्वविद्यालय के संस्थापक के सपनों और संस्कृतिक विरासत से जोड़ा जा रहा है। आज जामिया का वातावरण ज्ञान और शोध, विचार और रचना, संस्कृति और जागरूकता की ख़ुशबू से महक रहा है। विद्यार्थी अब सिर्फ पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं बल्कि शोध, नवाचार, सामाजिक सेवा और वैश्विक पहचान के लिए भी सक्रिय हैं। स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित सेमिनार, भाषण, संवाद, सांस्कृतिक कार्यक्रम और तालीमी मेला इस बात के स्पष्ट साक्ष्य हैं कि जामिया के शिक्षक, विद्यार्थी और कर्मचारी एकजुट हो कर ज्ञान और कला के दीप प्रज्वलित रखे हुए हैं और शिक्षा को सिर्फ पेशा नहीं बल्कि सेवा और जीवन का संकल्प बना चुके हैं।

प्रो. मज़हर आसिफ़ की दूरदर्शी विचारशील मार्गदर्शन और रजिस्ट्रार प्रो. मुहम्मद मेहताब आलम रिज़वी की प्रशासनिक क्षमता से यह स्पष्ट हो गया है कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया सिर्फ एक विद्यालय नहीं बल्कि एक आंदोलन, रचनात्मक केंद्र और सामाजिक चेतना के विकास का मंच भी है। तालीमी मेला का दुबारा आयोजन और स्थापना दिवस की गतिविधियों के साथ जामिया न सिर्फ अपनी ऐतिहासिक परंपराओं को ज़िंदा कर रही है बल्कि विद्यार्थियों के लिए एक आधुनिक और सक्रिय शैक्षिक वातावरण भी प्रदान कर रही है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक रोशन मिसाल और वैज्ञानिक तथा रचनात्मक विकास की बुनियाद है।