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मणिपुर की वीभत्स घटना से महिलाएं फिर से चर्चा के केंद्र में

एन हुडा. (N.HUDA)

मणिपुर में पिछले कुछ माह से चल रहे जातीय हिंसा में महिलाएं फिर से चर्चा के केंद्र में आ गयी हैं. मणिपुर में कुकी और मैतई समुदाय में विगत माह से जमकर हिंसा चल रही है. जहाँ इन दो समुदायों की हिंसा के बीच महिलाओं का चीरहरण भी हो रहा है. कुछ दिन पहले एक वीडियों सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी जिसमें दो कुकी महिलाओं को भीड़ द्वारा नंगा परेड कराया जा रहा था. वायरल वीडियों ने शासन, प्रशासन, बीजेपी के बेटी बचाओं नारों तथा देश की महिला राष्ट्रपति पर भी सवालिया निशान खड़ा कर दिया है. किसी भी हिंसा में सबसे कमजोर कड़ी महिलाओं को ही समझा जाता है. जातीय हिंसा हो, धार्मिक हिंसा हो या फिर जमीन-जायदाद के बंटवारे की हिंसा. सभी हिंसाओं में महिला ही सबसे कमजोर कड़ी होती हैं. तभी तो नग्न करने से लेकर महिलाओं को गाली देने तक पुरुष समाज पीछे नहीं हटता. खैर ये सिर्फ मणिपुर की बात नहीं है. इस देश में ऐसी तमाम घटनाएं महिलाओं के साथ घटी हैं. जिसे हम भूल कर आगे बढ़ जाते हैं. फिर किसी नये घटनाओं का इंतजार करने लगते हैं. ऐसी घटनाओं में सिर्फ सरकार और शासन-प्रशासन ही दोषी नहीं होते. हम और हमारा समाज भी उतना ही दोषी होता है. जितना की सरकार भी. ऐसी वीभत्स घटनाओं के विरोध में अब एक बड़ी भीड़ सड़को पर नहीं उतरती. उनके न उतरने के कई कारण भी हो सकते हैं? सबसे पहले तो सत्ता पक्ष, जिस राजनीतिक पार्टी के सरकार में ऐसी घटनाएं होती है तो उस पार्टी के कार्यकर्त्ता और नेतागण जुबान बंद कर लेते हैं. फिर हमारा समाज आता हैं. जहाँ पीड़िता की जाति और धर्म देखी जाती है. अगर उनके जाति और धर्म की न हो तब भी समाज की एक आबादी मुंह और आँख बंद कर लेती है. इसी समाज में एक और तबका भी होता है. जो ये सोचता है कि हमारे घर-परिवार में ऐसी घटना नहीं हुई तो हम क्यों विरोध करे. वही एक तबका और होता है जिसे पहले जनसरोकार की मीडिया कहा जाता था, अब उन्हें गोदी मीडिया कहा जाने लगा है. ये तबका सरकार को बचाने के लिए हिन्दू-मुस्लिम की नफरत फैला कर ऐसी वीभत्स घटनाओं पर पर्दा डालने का काम करती हैं. मणिपुर की इस घटना पर अब वो युवा, बुजुर्ग, लड़कियों और महिलाओं की भीड़ विरोध में नहीं दिखती जो 2013 में दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप के समय दिखी थी. पूरा देश उस दौर की कांग्रेस सरकार से आँख में आँख डाल कर सवाल कर रहा था कि दिल्ली में ऐसी घटना क्यों हुई? खैर उस दौर की सरकार अपने विरोधियों को जेल में नहीं डालती थी और न ही NSA या UAPA लगा कर गिरफ्तार करवाती थी. उस दौर की मौजूदा सरकार ने निर्भया के दोषियों को फांसी तक पहुंचा दिया था. और ऐसे दरिंदो को सभी धर्म समाज के लोगों ने बहिष्कार भी किया था. खैर अब तो राजनीतिक भी धर्म से प्रेरित हो कर चल रही है. कटुआ की आसिफा याद ही होगी. जिस बच्ची के बलात्कारी और हत्यारों को बचाने के लिए तिंरगा रैली भी निकाली गयी थी.अब तो बलात्कारी और महिलाओं का शोषण करने वाले की जाति और धर्म देख कर समर्थन में रैलियां निकाली जाती है. हाथरस और उन्नाव की घटना भी आपके जेहन में बखूबी याद होगा. इस पूरी घटना में समाज, सरकार और मीडिया का रवैया क्या था. वो सब के सामने था.

खैर आते हैं असल मुद्दे पर मणिपुर की घटना से देश शर्मसार हुआ है. और विपक्ष के साथ कुछ लोगों ने इस घटना के विरोध में जगह जगह प्रदर्शन भी किया है. मगर सवाल आज भी वही है कि क्या भविष्य में ऐसी घटनाएं रुक जायेंगी? महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा पर पूर्णविराम लग जाएगा? इसका जवाब अब भी किसी के पास नहीं है. अगर इसका जवाब किसी के पास होता तो उत्तराखंड में अंकिता भंडारी के साथ बलात्कार और उसकी हत्या नहीं हुई होती. ऐसी घटनाएं ज्यादातर जातीय और धार्मिक हिंसा में होती है और कहीं न कही ये राजनीतिक से प्रेरित होकर राजनीतिक पार्टियों के नेता भी ऐसी घटनाओं में शामिल होते हैं. इसीलिए आज तक ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए किसी भी पार्टी की सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया और न ही कोई कड़े कानून बनाए गए. आप यहाँ पॉंक्सो एक्ट की बात मत कीजिएगा. अगर ये एक्ट कठोर होता या फिर शक्ति से लागू होता तो बीजेपी सांसद ब्रजभूषण आज सलाखों के पीछे होता.
अब कुछ घटनाओं और दोषियों की सजा पर भी नजर डालते हैं.

नैना सहनी तंदूर कांड: 3 जुलाई 1995 को नैना सहनी के पति सुशील कुमार ने नैना की हत्या कर अपने रेस्तरां के तंदूर में जला दिया था. 23 साल बाद कांग्रेस नेता सुशील कुमार को जेल से रिहा कर दिया गया. सारे सबूत रहते हुए उम्रकैद की सजा ही सुनाई गयी थी. अब नैना सहनी लौट कर नहीं आ सकती मगर इंसाफ के नाम पर उसे क्या मिला?

मनोरमा देवी: ये घटना मणिपुर की है. 10 जुलाई 2004 की रात 12 बजे के बाद असम राइफल्स के लोग मनोरमा देवी के घर में घुसते हैं, जिसमें कुछ सीविल ड्रेस में भी थे. फिर मनोरमा देवी को मारते हुए घर से बाहर लाते हैं. हथियार और नक्सलियों के बारें में पूछताछ करते हैं. कई मीडिया खबरों के अनुसार मनोरमा देवी के कपड़े फाड़े जाते हैं. बुरी तरह मार पिट भी की जाती है. मनोरमा देवी को घर से ले जाने के बाद मनोरमा की लाश घर से चार किलोमीटर की दूरी पर मिलती हैं. गोलियों से छलनी लाश को देखकर कई लोगों का कहना था कि मनोरमा के साथ बुरी तरह से बलात्कार किया गया था.

ये दो घटनाएं भी इसी देश में हुई हैं. और भी कई सारी घटनाएं हो चुकी हैं और हो भी रही हैं. आप इन दो घटनाओं को देखिए और सवाल कीजिए क्या इन दोनों घटनाओं में मर चुकी महिलाओं को इंसाफ मिला है. अगर नहीं मिला तो क्यों?