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मोदी ने लोकसभा चुनाव में खुद को पिछड़ा बताया था, मगर इनकी सरकार में पिछड़ों का आरक्षण ख़त्म हो रहा है

धर्मराज कुमार.

वर्तमान समय में विश्वविद्यालयों में नियुक्तियां 200 बिंदु के कोटिवार आरक्षण पर होता था जिसकी गणना संस्थान विशेष के कुल संख्या के अनुपात में होता था। मतलब अगर किसी संस्थान में 200 पद पर नियुक्तियां होनी है तो 99 पद आरक्षित कोटे में जाएंगे शेष 101 पद सामान्य पद के लिए आरक्षित होगी। अब यह व्यवस्था बदल गई। अब इसे 13 बिंदु कोटिवार आरक्षण में बदल दिया गया। मतलब? अब आपको सिर्फ 13 % प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। यानी कि संविधान के अनुसार वर्तमान 49.5 आरक्षण को घटाकर 13 % प्रतिशत कर दिया गया है।

अब आप सवाल करेंगे कि चूंकि यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिया है तो कुछ तो तर्क होगा ही? जरूर है। मगर वह सत्ता और बल का तर्क है। जिसमें तर्क नाम की कोई चीज नहीं है। अगर आपके पास बल होता तो आपको 49.5% ही नहीं बल्कि सवर्णों की तरह 87 % प्रतिशत आरक्षण मिलता।

आरक्षण का सीधा मतलब होता है किसी की सुरक्षा हेतु उठाया गया कदम। अर्थात कोई भी व्यक्ति कमजोर है तो उसकी रक्षा करना किसी भी राज्य की जिम्मेदारी है। अगर राज्य ऐसा नहीं करेगी तो वहां के लोग अपने नैसर्गिक तरीके से जंगल न्याय की ओर रुख कर लेंगे।

यह व्यवस्था पूरी दुनिया में अलग-अलग नाम से दी जाती है। भारत में आरक्षण दिए जाने का आधार सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन है। शैक्षणिक से भी कहीं अधिक सामाजिक है क्योंकि भारत जाति प्रधान देश है। भारतीय समाज मुख्यतः जातियों का समाज है। भारत में मनुष्य का मूल्यांकन और सम्मान उसकी जाति के आधार पर होता है। उदाहरण के लिए, गाँव का एक दलित चाहे कितना भी अमीर और आत्मनिर्भर क्यों न हो, वह घोड़े पर चढ़कर अपनी बारात नहीं ले जा सकता। सवर्ण कितना भी बड़ा दोषी और हत्यारा क्यों न हो उसे आसानी से सजा नहीं दिया जाता। उदाहरण के लिए, बिहार के दो मुख्यमंत्रियों का नाम एक ही घोटाले में है – श्री लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्रा। लेकिन लालू यादव को सजा हुई और वे जेल में हैं जो भयानक जानलेवा बीमारी से जूझ रहे हैं जबकि उनपर अभी तक कोई अपराध साबित नहीं हुआ है, वहीँ जगन्नाथ मिश्रा बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री के साथ मंच पर अपनी किताब का लोकार्पण कर रहे हैं।

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दिलचस्प बात है कि जगन्नाथ मिश्रा का बेटा नीतीश मिश्रा बिहार सरकार में मंत्री हैं और श्री लालू प्रसाद यादव जी का बेटा तेजस्वी यादव पूर्व उपमुख्यमंत्री, बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष का नेता और भावी मुख्यमंत्री पद का सशक्त दावेदार। अब समझिये कि यहाँ श्री लालू यादव और जगन्नाथ मिश्रा का अपराध न्यायालय के सामने बराबर है; आर्थिक मामले में दोनों बराबर हैं; राजनीतिक मामले में बराबर हैं; लेकिन भारतीय सामाजिक व्यवस्था अर्थात जाति व्यवस्था की नज़र में श्री लालू प्रसाद यादव पिछड़े हैं और मिश्रा ब्राह्मण होने के कारण अगड़े हैं।

पिछड़ा का मतलब जो पीछे हो, और अगड़े का मतलब जो आगे हो। अब आप तय कीजिए कि मिश्रा के पास ऐसी कौन सी प्रतिभा है जिससे वे श्री लालू यादव से अगड़े हैं जिनके प्रति न्यायालय इतना नरमी बरतता है? ऐसी है भारत की जाति व्यवस्था। यहाँ उदाहरण तो फिर भी बहुत ही ऊँचे वर्ग से लिया गया है। जमीनी हकीकत इतनी बुरी है कि यहाँ सवर्णों को अगर कोई हिटलर की तरह गैस चैम्बर में भी डाल दे तो उसे सही ठहराने के लिए आपके पास इतिहास के हवाले से अनगिनत तर्क मिल जायेंगे।

चूंकि बात तर्कों की हो रही है तो यह समझना आवश्यक है कि तर्क का स्रोत क्या होता है? यहाँ तर्क के स्रोत पर बात रख रहा हूँ।

इस देश में किसी भी महिला का बलात्कार और हत्या होती है तो लोग अपराधी को दंड दिलाने के बजाए लड़की को ही कोसते नज़र आते हैं। उसके लिए तर्क दिया जाता है कि जब पता है कि पुरुष बलशाली होता है तो लड़की को अकेले कहीं नहीं जाना चाहिए। फिर इसमें भी जाति व्यवस्था हावी होती है। लोग कहते हैं लड़की बाहर क्यों निकली थी? फिर लड़की का बलात्कार घर में हो जाता है तो तर्क दिया जाता है कि उसका काम मर्दों को खुश रखने के अलावा और है क्या? तब हमने लडकियों को आरक्षण दिया। मेट्रो से लेकर रोजमर्रा के जीवन में बराबर रूप से चलने के लिए आरक्षण और विशेष कानून बनाए। इसमें भी अधिकतर लाभ जाति के आधार पर ही मिलता है।

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आप गरीब हैं तो लोग तर्क देंगे कि तुम पैसा क्यों नहीं कमाते? गरीब घर में क्यों जन्म लिया?

जब आप पैसा कमा लेंगे तो कहेंगे कि तुमने गलत तरीके से पैसा क्यों कमाया?

जब आप अहिंसक होंगे तो आपके खिलाफ हिंसा कर दिया जाएगा। जैसे निहत्थे और बुजुर्ग गाँधी को एक ब्राह्मण ने गोली मार दिया और उसके भी तर्क गढ़ दिए। उसकी भी किताबें बहुत बिकती हैं और उसके ही अनुयायी ने आज आरक्षण भी ख़त्म कर दिया।

कुल मिलाकर हालात ऐसे हैं कि आपके खिलाफ अन्याय होता रहेगा और उसके तर्क दिए जाते रहेंगे। मतलब क्या?

मतलब यह कि ब्राह्मणवादियों (जिसमें ब्राह्मणों को खुश करने वाले दलित, पिछड़े और आदिवासी, महिला इत्यादि सब) और सवर्णवादियों के लिए तर्क कोई मानव सभ्यता और उसकी रक्षा से प्रेरित चेतना नहीं है, बल्कि अपने ज्ञान की आड़ में शक्ति का भोंडा, अमानवीय और क्रूर प्रदर्शन है।

सवाल यह नहीं है कि 200 रोस्टर आरक्षण था तो हमारे साथ अन्याय नहीं हो रहा था। सवाल है कि हम कबतक मनुष्य को मनुष्य होने तक से इनकार करते रहेंगे।

मनुष्य और जंगली और खूंखार जानवर में क्या फर्क है? कभी आपने सोचा है? नहीं! मैं बता देता हूँ।

मनुष्य का संबंध उस चेतना से है जिसमें जिसमें मनुष्य को पता होता है कि जंगली और खूंखार जानवर मनुष्य के लिए खतरनाक होते हैं फिर भी वह उसके लिए नैसर्गिक घर, जिसे हिंदी में अभ्यारण्य कहते हैं, बनाता है उसकी रक्षा के लिए गुहार लगाता है। उसे बचाना चाहता है, पालना चाहता है, पालता है। जबकि जंगली और खूंखार जानवर ऐसा कुछ नहीं करते।

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कोई भी व्यक्ति आपको दिखे तो आप उसे यहाँ दिए गए पैमाने से समझ सकते हैं कि अमुक व्यक्ति मनुष्य है या मनुष्य की खाल में जंगली और खूंखार जानवर जो आपको मारकर खा जायेगा।

भारतीय समाज के संदर्भ में, मनुष्यों ने आरक्षण की सीमा मनुष्यों और जंगली जानवरों में आपसी तालमेल और साहचर्य के लिए बनाए थे, जिसे जंगली और आदमखोर जानवरों ने तोड़ दिया है। अब आपको और मजबूत और बड़े सीमा वाला आरक्षण चाहिए ताकी मनुष्य भी जीवित रह सके और जानवर भी।

जीवन का तर्क बस इतना ही है। कोई ख़तम नहीं होता। सब यहीं रहते हैं।

आरक्षण का तर्क जीवन के तर्क से प्रेरित होता है। जो आरक्षण ख़तम कर रहे हैं उन्हें मालूम होना चाहिए कि वे मनुष्यों का जीवन ख़तम करना चाह रहे हैं। मानव सभ्यता हमेशा से आगे ही बढ़ता आया है, और आगे ही बढेगा।