News Cubic Studio

Truth and Reality

Uttarakhand : घोषणाओं का पहाड़

चुस्णय अर्थात लॉलीपॉप। मीठा लॉलीपॉप चूसने के बाद हाथ में सिर्फ डंडी बच जाती हैं जिसे फेंकने के लिए व्यक्ति खाली जगह खोजता रहता हैं। यही हाल सूबे में देखने को मिल रहा हैं। नेता एक दिन के लिए गाजे बाजे के साथ क्षेत्र में आरहे हैं और अनेकों घोषणाएं कर के देहरादून वापस। पार्टी कार्यकर्ताओं को लॉलीपॉप पकड़ा कर अपना कमीशन जेब में डाल गायब। चुस्णय चूस कर कार्यकर्ता डंडी जनता के हाथ थमा कर नेता के पीछे-पीछे शहरों को लौट जाते हैं। नेता जी खुद की विधामसभा को अगल बगल के विधानसभा से तुलना कर रहे हैं कि हम ने अपने विधानसभा में अधिक घोषणाएं करी हैं किंतु धरातली हकीकत का जायजा नही लिया जा रहा हैं। जायजा लें भी तो किस मुँह से।

कुछ महानुभाव स्वघोषित माननीय सोशलमीडिया पर ही घोषणा चस्पा रहे हैं तो कुछ अखबारों के कोने में दिख रहे हैं। करोड़ों से नीचे की तो कोई बात नही करता है केन्द्र से भी 35 हजार करोड़ का करोना पैकेज संसद में बजट सत्र में रखा था उस का कोई चिल्लर उतडे कर देहरादून तो गिरा ही होगा। सायद इसी को आपदा में अवसर कहते हैं। घोषणा करो मस्त रहो। जनता जो घोषणाओं के अफीम में उलझा दीजिये काम जाए भाड़ में। करोड़ों कहाँ गायब हो रहे हैं यह कोई नही जानता। धरातली हकीकत यह हैं कि चिकित्सा केंद्रों में कमर्चारियों का टोटा औषधियों का अभाव। कूड़े के ढेर में तब्दील अनेकों चिकित्सा केन्द्र श्मशानघाट की तरह लग रहे हैं। प्रतिदिन अखबारों में विधायकों की घोषणाएं पढ़ने को मिल रहे हैं विधायकों का धनरक्षक व अंग रक्षक अखबार के टुकड़ों को बड़े बड़े गुणगान लेख लिख कर सोशलमीडिया में फेंक रहे हैं अनेकों व्हाट्सएप ग्रुपों में अखबार फेंकने के बाद अंगरक्षकों को मेहनताना मिलता हैं या नही यह उन की गोमूत्र से धुली पवित्र आत्मा जाने।

See also  Uttarakhand: Disabled player asked for help from MLA, said - facility has not been received till date

विधायकों की घोषणाओं से प्रतीत होता हैं कि प्रदेश सोने की चिड़िया बन चुका हैं किंतु सोना जड़ना बाकी हैं। विधायकनिधि से 20 गुना अधिक घोषणाएं हो चुकी हैं। लगता हैं 2022 कल सुबह आजाएगा। एक बात जो गौर करने वाली है वह यह कि लाखों के घोषणाओं में यह नही लिखा हुआ कि किस कार्य हेतु पैसा आवंटित किया गया। सिर्फ करोना के नाम का ठीकरा फुट रहा हैं। करोना को बदनाम कर दिया हैं बाकी सब अयोध्या वाले भगवान जाने।
मुख्यमंत्री राहत कोष से प्रत्येक ब्लॉक को पैसा दिया जा रहा हैं 95 लाख मुख्यमंत्री ने दिया हैं। बल केन्द्र पैसा दे रहा हैं। हालांकि सुप्रीमकोर्ट ने आज ही केन्द्र को फटकार लगाई हैं कि उत्तराखण्ड को अभी तक करोना फंड क्यों नही दिया गया फिर भी कार्यकर्ताओं के अनुसार हम मान लेते हैं कि केंद्र भी उत्तराखण्ड को पैसा भेज रहा हैं who का पैसा भी गायब हैं। यहां पैरासिटामोल का एक पत्ता 50₹ का हो चुका हैं। जैसे राष्ट्र हित में महंगा पेट्रोल महंगी डाल हम हजम कर रहे हैं वैसा ही पैरासिटामोल भी हजम हो गया। किसी भी विधामसभा में चिकित्सा के नाम पर चिकित्सा की गुणवत्ता सुधारने हेतु घोषणाएं 50 से कम नही हुई। किंतु लेकिन परंतु का कहीं जवाब नही। सेनिटाइजर का पानी अब जाके छिड़का जा रहा हैं इसे हम उत्तरप्रदेश व बिहार की गंगा का पानी समझ लेते हैं जिस में लांशे तैर रही हैं। बेचारे प्रधानों का कोई नही रहा दबाव में आकर कुछ तो करना पड़ेगा। आंतों की सफाई के लिए सेनिटाइजर खरीदने को पैसा छिपाया था सरकार ने वह भी निखोल दिया। विधायकनिधि कि डर से गांव में सेनिटाइजर करना पड़ रहा हैं दबी आवाज में ही सही सब यही कह रहे पीछे करोना काल का पैसा अभी तक नही मिला। इस बार एक खर्चा ओर हो गया। पर बात सत्य यही है कि जब हाथी चलेगा तो अगल बगल के छोटे जानवरों को दिक्कतें तो होंगी ही। इस में किसी की जान भी जा सकती हैं बर्दास्त करना पड़ेगा।
इतनी घोषणाओं के बावजूद भी लोग उपचार के बिना मर रहे हैं। मरने वाले के परिवार को कहानी बताने के लिए यह भी पता नही लग रहा कि बीमारी क्या थी। मृत आत्माएं घाटों पर अपनी डेडबॉडी नही पहचान पाई हैं। यहां सुकून से मौत मिल जाए वैंकुण्ट समझो। विधयकों ने चिकित्सकों की नियुक्ति नही कराई पर शमशानघाट पर हर व्यस्था ठीक हो जायजा जरूर लिया हैं। मंदबुद्धि अपाहिज जाहिल विधायकों को यह भी नही मालूम कि आपदा में जब तुम कुछ नही कर सकते तो सांतुना भरे दो शब्द तो बोल ही सकते हो। दवाइयों की व्यवस्था नही तो शमशानघाट की व्यवस्थाओं वाला बयान क्यों दिया जा रहा हैं।

See also  Chhattisgarh : CM Bhupesh Baghel said on the Dharma Sansad controversy, 'If goons wear saffron clothes, they are not called saints'

इन ही जाहिलों की वजह से पहाड़ों के चिकित्सालय रैफर सेंटर बन गए। डॉ मरीजों को देखने को तैयार नही सब अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। वर्तमान में आलम यह हैं कि क्षेत्र के विधायक की औकात वन सरपंच के बराबर की भी नही रही। तभी तो कार्यकर्ता कह रहे है 2022 में वोट मांगने आवोगे तो गली में लठ रखी हैं। व्यक्तिगत लाभ के लिए दैनिक घोषणा कार्यक्रम चल रहे हैं परिणाम शून्य बटा जीरो धरातल को कोई परिवर्तन नही हैं सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा गॉंव गांव जाकर दवाइयां बांटी जा रही हैं अनेकों NGO पहाड़ों में कार्य कर रहे हैं इस वजह से कुछ हद्द तक लोगों का जीवन सुगम बना है अन्यथा जनप्रतिनिधियों ने भगवान भरोसे लोग छोड़े हैं।

देवेश आदमी