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Himachal Pradesh : लघु उद्योग भारती सरकार के इस निर्णय को लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों के लिए नहीं मानती उचित

लघु उद्योग भारती हिमाचल प्रदेश के अनुसार भारत सरकार के सूक्ष्म लघु एवं  मध्यम उद्योग मंत्रालय ने गत 2 जुलाई को एक ज्ञापन जारी किया है। जिसके अनुसार थोक व खुदरा व्यापारियों को एमएसएमई का दर्जा प्रदान किया है। इस ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि विभिन्न वर्गों की मांग पर यह निर्णय किया गया है। इस दर्जा प्रदान का उपयोग “प्राथमिकता क्षेत्र ऋण और उधार” तक  सीमित है। उससे  लघु उद्योगों को दी जाने वाली वरीयता ऋण सुविधा का लाभ व्यापारियों को भी उपलब्ध होगा। सूक्ष्म एवम लघु उद्योगों के विकास हेतू कार्यरत देश के सबसे बड़े राष्ट्रीय संगठन लघु उद्योग भारती सरकार के इस निर्णय को लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों के लिए उचित नहीं मानती। यह इनके लिए बहुत ही हानिकारक है।

लघु उद्योग भारती का मत है कि व्यापार एवं उत्पादन/निर्माण क्षेत्र में एक बड़ा अंतर है दोनों को एक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। अतः  देश में सूक्ष्म और लघु उद्योगों  के लिए उपलब्ध प्राथमिकता क्षेत्र ऋण एवं वरीयता ऋण सुविधा पहले ही अपर्याप्त है। इस नए निर्णय  से उसमें व्यापारी  का समावेश होने के कारण उपलब्ध धनराशि में बटवारा होगा,और निर्माण/उत्पादन में लगे  सूक्ष्म एवं लघु  उद्योगों की आर्थिक समस्या बढ़ेगी। ऋण के अलावा सुक्ष्म और लघु उद्योगों के लिए उपलब्ध “आपूर्ति परियोजना” एवं अन्य सुविधाओं का भी बंटवारा संभव है। जिससे निर्माण क्षेत्र में लगे लघु उद्योगों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और प्रोत्साहन में कमी आएगी।  देश में ,निर्माण  गतिविधियों में कमी होगी और रीपैकेजिंग असेंबलिंग क्षेत्र और अप्रत्यक्ष व्यापारी प्रवृत्ति में भारी मात्रा में वृद्धि होगी ।जिसके परिणाम स्वरूप उत्पादन / निर्माण क्षेत्र बंद होगा, रोजगार में कमी आएगी और सामाजिक आर्थिक  संतुलन बिगड़ेगा।

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प्रधानमंत्री द्वारा घोषित मेक इन इंडिया, वोकल फ़ॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं के  सफल होने के लिए निर्माण/ उत्पादन गतिविधियों में वृद्धि होना अत्यंत आवश्यक है ।लेकिन व्यापार क्षेत्र के समावेश से सूक्ष्म एवं लघु उद्योग जो निर्माण/ उत्पादन में लगे हैं पर विपरीत प्रभाव के कारण ऐसा होना असंभव होगा।

देश में सर्वप्रथम 1999 मैं केंद्र में सत्तारूढ़ बाजपेई सरकार ने निर्माण / उत्पादन में लगे लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देने हेतु अलग से लघु उद्योग मंत्रालय का गठन किया था। जिसका नाम सन 2006 में एमएसएमई मंत्रालय किया गया है ,इसलिए इस मंत्रालय का प्रमुख कार्य क्षेत्र लघु उद्योगों तक ही सीमित होना चाहिए। अर्थव्यवस्था में व्यापार की भूमिका का हम महत्व स्वीकार करते हैं, उसे प्रोत्साहन की आवश्यकता है। लेकिन इसके लिए संबंध मंत्रालय एवं विभाग अलग से कार्य योजना निश्चित करें। हम निवेदन करते हैं की व्यापार आदि विषय इससे अलग रहें। और व्यापार एवं उद्योग मंत्रालय के साथ में समावेश करके योजनाओं का क्रियान्वयन हो।

आत्मनिर्भर भारत के लिए निर्माण /उत्पादन क्षेत्र का बढ़ना बहुत ही आवश्यक है। क्योंकि आज विश्व की कुल व्यापार में भारत की तीन परसेंट की भागीदारी है जबकि चीन में उत्पादन क्षेत्र अधिक होने के कारण 28 परसेंट है। लघु उद्योग भारती का स्पष्ट मत है कि एक विभाग के अंतर्गत निर्माण ,व्यापार और सेवा क्षेत्र का घालमेल देश में उत्पादन और निर्माण क्षेत्र को कम करेगा और पूरे विश्व को व्यापार के अंतर्गत भारत में  बाजार उपलब्ध कराने के रास्ते खोलेगा । इन सभी बातों को ध्यान में रखकर सरकार को अपने इस निर्णय का पुनर्विचार करना चाहिए।