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Uttar Pradesh / Pratapgarh : प्रतापगढ़ के वरिष्ठ अधिवक्ता व साहित्यकार भानु प्रताप त्रिपाठी ‘मराल’ का हुआ निधनएक दर्जन से अधिक पुस्तकों का हुआ था प्रकाशन ब्रजेश त्रिपाठी

प्रतापगढ़ जिले के माने जाने वरिष्ठ अधिवक्ता व कविश्रेष्ठ भानु प्रताप त्रिपाठी ‘मराल’ का शनिवार प्रातः 8 बजे रोडवेज़ बस स्टेशन के निकट आवास पर निधन हो गया।वह पिछले कई महीनों से अस्वस्थ चल रहे थे।वह 81 वर्ष के थे।उनके निधन का समाचार सुनते ही जिले के तमाम अधिवक्ता, साहित्यकारों, समाजसेवियों व प्रबुद्ध जनों ने आवास पर पहुँचकर गहरी संवेदना जताई।प्रतापगढ़ जिले के लालगंज तहसील अन्तर्गत विकासखंड सांगीपुर के पूरेसेवकराम भोजपुर गांव में 10 नवंबर 1940 को भानु प्रताप का जन्म हुआ था।उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा गांव से किया और स्नातक व विधि स्नातक 1960 में प्रयाग वि0वि0से करने के पश्चात प्रतापगढ़ में वकालत प्रारंभ किया।अपनी विशेष क्षमता व योग्यता के कारण वह वकील परिषद के अध्यक्ष भी रहे।धीरे धीरे *मराल* का रुझान कविताओं के सृजन में हो गया।इनकी एक दर्ज़न साहित्यिक पुस्तकें संजय खण्ड काव्य, दहेज़ उपन्यास अगुवा बिआह के भये भाय,, सपनों का भारत, इंदिरा गांधी, देश हमारा धरती अपनी आदि प्रकाशित हुई हैं और अनेक हिन्दी संस्थानों द्वारा सम्मानित होते हुए इन्हें पुरस्कृत किया गया।वर्ष 2020 में उनकी दो पुस्तकें ‘बनदेवी’ व ‘मेरी ज़िन्दगी’ प्रकाशित हुईं।वह मानसिक रूप से स्वस्थता का अनुभव करते हुए पिछले वर्ष तक कविताओं का सृजन करते रहे। ‘मराल’ जी ने अपनी पुस्तक ‘मेरी ज़िंदगी’ की शुरुवाती चार लाइनों में अपने दिल की बात उजागर कर दी-मेरी ज़िन्दगी की संक्षिप्त कहानी, लिए दर्द व पीर की है निशानीकलम लिख रही है मेरी भावना को, आर्थिक तंगी में मेरी बीती जवानी।