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घाटी में फिर आग बरपा..

किसी पत्रकार ने अग्निहोत्री से सवाल पूछा कि क्या The Kasmir Files फ़िल्म की कमाई से कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ विकास कार्य किया जाएगा..? तो अग्निहोत्री ने जवाब दिया कि फ़िल्म से अभी कोई कमाई नही हुई। भले आप को लग रहा हैं कि हम ने पैसा कमाया पर पर ऐसा नही है आप हकीकत से अभी बहुत दूर हो। हालांकि तब तक फ़िल्म ने 200 करोड़ कमा लिए थे और टिकटें 11 दिन तक बुक थी। देशभर में इस फ़िल्म के लिए टिकटों की मारामारी हो रखी थी। परंतु हकीकत यह हैं कि कश्मीरी 1990 में भी सड़कों पर थे आज भी लोग सड़कों पर हैं फिल्में अनेक बनी जख्म जस के तस हालात सुधने का नाम नही ले रहे। अब पुनः कश्मीरी पलायन करने पर मजबूर हैं। उपराज्यपाल सोए है फ़िल्म निर्माता पैसा कमा कर मसाज कराने बैंकॉक चले गए नीले रंग के डॉन डॉ डैंग के घर इंटरनेट काम नही कर रहा वरना वे झट से ऑनलाइन आकर मौजूदा मश्मीरी स्थिति पर अपने बयान देते। फिल्में आम लोगों के लिए सिर्फ इंटटेन्मेंट का साधन हैं मनोरंजन के मध्य यदि ज्वलंत मुद्दे आते हैं तो यह समाज का सौभाग्य हैं परंतु उन मुद्दों पर आज तक कोई कार्यवाही नही हुई। ऐसी अनेकों फिल्में हैं सरबजीत, 26/11 अटैक इस का उदाहरण हैं। भारत में फिल्मों से सिर्फ फ़िल्म के कलाकरों का भविष्य बदला हैं। फ़िल्म बनाने वाले निर्माता निर्देशकों के अलावा किसी भी दर्शक का भविष्य नही बदला इस का उदाहरण हाल में आई देश भक्त का चोला ओढ़े the कश्मीर फाइल फ़िल्म हैं। फ़िल्म के सुरु में मोटे मोटे शब्दों में लिखा गया हैं कि इस फ़िल्म की सभी घटनाएं काल्पनिक हैं इन का किसी भी धर्म जाति साम्प्रदाय व किसी व्यक्ति से न जोड़ा जाए। परंतु अंधों बहरों के लिए बनी यह फ़िल्म हकीकत बन गई। जिन के पैसे बनने थे बन गए कुछ दिन का हल्ला हुआ और आज स्थिति जैसी की तैसी। जिस तरह से जम्मू कश्मीर में हालात बन रहे हैं सोचनीय विषय हैं कि क्या वाकई हम कश्मीर को भारत का हिस्सा मानते हैं। फ़िल्म तो मनोरंजन के लिए बनी है पर केन्द्र की सरकार किस लिए बनी हैं राष्ट्रपति शासन किस लिए लगाया गया हैं। आज कहाँ हैं लोकतंत्र का चौथा स्तंभ जिन को अब कश्मीरियों का दर्द नही दिखता। मुफ्त में फ़िल्म की टिकटें बांटने वाले समाज सेवियों का हुजूम आज नही दिख रहा सोशलमीडिया पर जातिवाद का खेल खलने वालों को अब पण्डितों का दर्द नही दिखता। मात्र राजनीति के लिए धर्म जाती का खेल खेलने वालों से बचें। एक विषय पर दो मत होना इस को राजधर्म नही कहते।

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कश्मीर सदैव राजनीति का विषय रहा हैं जिस ने इस विषय पर अच्छी पकड़ बनाई उस को सत्ता मिलने से कोई नही रोक सकता। We want justice के नारों से आज भी लालचौक गूंज रहा हैं आज भी घाटी में हालात नही बदले। क्यों कि कोई भी राजनीतिक दल नही चाहता कि बनाबनाय मुद्दा क्यों खराब करें। क्यों हम ज्वलंत मुद्दे को खत्म करें जो मुद्दा 300 करोड़ का बजट दे सकती है वह 300 सीट भी दे देगी।

देवेश आदमी