पश्चिम बंगाल में चुनावी कटुता भुलाने का समय
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और केंद्र की मोदी सरकार के बीच टकराव का जो सिलसिला ममता बनर्जी के दूसरे कार्यकाल में प्रारंभ हुआ था वह उनके तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही पहले से अधिक तेज हो गयाहै। इसका सबसे बड़ा सबूत हाल में ही तब मिला जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राज्य में चक्रवाती तूफान से हुए नुकसान का जायजा लेने के लिए राज्य के दौरे पर पहुंचे। तूफान से हुए नुकसान की समीक्षा बैठक में प्रधानमंत्री मोदी को ममता बनर्जी का इंतजार करना पड़ा। ममता बनर्जी जब बैठक में पहुंची तो वहां नवनिर्वाचित राज्य विधानसभा में भाजपा विधायक दल के नेता शुभेंदु अधिकारी भी मौजूद थे। ममता बनर्जी को उक्त शुभेंदु अधिकारी की मौजूदगी नागवार गुजरी। उन्होंने अपनी नाराजग़ी तो व्यक्त नहीं की परंतु बाद में उन्होंने इस बात पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इस तरह की बैठकों में विपक्ष के नेता को आमंत्रित किए जाने की कभी परंपरा नहीं रही। ममता का कहना था कि उन्हें अपमानित करने की मंशा सेही शुभेंदु अधिकारी को बैठक में आमंत्रित किया गया था। उक्त बैठक में ममता बनर्जी के साथ राज्य के मुख्य सचिव भी पहुंचे थे। ममता बनर्जी ने थोड़ी देर के लिए उक्त बैठक में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई । राज्य को तूफान से हुए नुकसान की रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपने के बाद वे बैठक स्थल से उठकर चलीं गईं। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह सहित भाजपा के अनेकनेताओं ने प्रधानमंत्री की बैठक छोड़कर जाने के लिए जब ममता बनर्जी की कड़ी आलोचना की तो उन्होंने स्पष्ट किया कि बैठक से जाने के पूर्व उन्होंने तीन बार प्रधानमंत्री से विनम्रतापूर्वक अनुमति प्राप्त की थी। ममता बनर्जी का कहना था कि उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि उसी समय तूफान के बारे में ही एक अन्य स्थान पर भी बैठक आयोजित कर ली गई है इसलिए बीच में ही उक्त बैठक से जाने के लिए वे विवश हो गई ।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ राज्य के मुख्य सचिव अल्पन बंदोपाध्याय भी उक्त बैठक से उठकर चले गए। केंद्र सरकार ने इसके बाद अल्पन बंदोपाध्याय को राज्य सरकार की सेवाओं से मुक्त 72 घंटे के अंदर न ई दिल्ली स्थित नार्थ ब्लॉक में कार्यभार ग्रहण करने का आदेश दे दिया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इसके पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के अनुरोध पर अल्पन बंदोपाध्याय का सेवाकाल तीन साल के लिए बढ़ा दिया गया था। केंद्र सरकार के आदेश पर उन्हें सेवामुक्त करने के बजाय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के आदेश को असंवैधानिक निरूपित करते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा कि अल्पन बंदोपाध्याय 31 म ई को मुख्य सचिव पद से सेवानिवृत्त हो गए हैं और वे अब आगामी तीन साल पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री के सलाहकार के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान करेंगे। ममता बनर्जी के इस पत्र के बावजूद केंद्र सरकार अब अल्पन बंदोपाध्याय को अपने आदेश के उल्लंघन के आरोप में अब चार्जशीट देने का मन बना चुकी है। जाहिर सी बात है कि यह अप्रिय विवाद अब जल्दी थमने वाला नहीं है। ममता बनर्जी यह भी कह चुकी हैं वे पश्चिम बंगाल की जनता के हित में प्रधानमंत्री मोदी के चरण स्पर्श करने के लिए भी तैयार हैं परन्तु वे अपना अपमान सहन नहीं करेंगी।
हाल में ही मैंने अपने एक लेख में दिखा था कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार का गठन हो जाने के बाद अब चुनावी कटुता को भुला कर राज्य के प्रमुख विपक्षी दल भाजपा और तृणमूल कांग्रेस सरकार को कोरोना के प्रकोप से निपटने पर संयुक्त प्रयास करना चाहिए। राज्य की जनता का हित भी इसी में है परंतु भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच दिनों दिन उग्र हो रहे विरोध के कारण सबसे अधिक नुकसान जनता का ही हो रहा है।ऐसा प्रतीत होता है कि पहली बार राज्य की सत्ता में आने का सुनहरा स्वप्न बिखर जाने से कुंठित भाजपा अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पूरे पांच साल तक चैन से नहीं बैठने देना चाहती है। चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी के सामने पहली प्राथमिकता कोरोना संकट पर काबू पाना था और जब ममता बनर्जी उसके लिए प्रभावी रणनीति बनाने की तैयारी कर रही थीं तभी राज्य को चक्रवाती तूफान की आपदा का सामना करने के लिए विवश होना पड़ा। नि:संदेह ममता सरकार के सामने दो दो कठिन चुनौतियां हैं और तीसरी चुनौती यह है कि केंद्र सरकार से उन्हें अपेक्षित सहयोग मिलने का भरोसा नहीं है।
पश्चिम बंगाल सरकार के मुख्य सचिव को न ई दिल्ली के नार्थ ब्लॉक कार्य भार ग्रहण करने के केंद्र सरकार के आदेश ने बहुत से सवाल खड़े कर दिए हैं जिनका कोई निश्चित उत्तर मिल पाना संभव प्रतीत नहीं होता। लेकिन यह अनुमान तो लगाया ही जायेगा कि प्रधानमंत्री की बैठक में मौजूद न रहने के कारण ही यह आदेश जारी किया। जो उनके विरुद्ध संभाव्य अनुशासनात्मक कार्रवाई का हिस्सा है। लेकिन यहां महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या मुख्यमंत्री के आदेशों की अवहेलना किसी राज्य सरकार मुख्यसचिव के लिए संभव है। क्या किसी मुख्य सचिव से ऐसी अपेक्षा की जानी चाहिए। केंद्र सरकार किसी भी राज्य के राज्य पाल से तो यह अपेक्षा कर सकती है कि वह सीधे केंद्र को रिपोर्ट करें परंतु मुख्यमंत्री के निर्देशों का पालन करने के लिए तो मुख्यसचिव बाध्य है फिर वह भाजपा वाले राज्य का मुख्य सचिव हो अथवा गैर भाजपा शासित राज्य का। दरअसल केंद्र सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई परोक्ष रूप से मुख्य मंत्री ममता बनर्जी के साथ केंद्र सरकार के टकराव का ही नतीजा है परंतु अगर इसे एक परंपरा का रूप दे दिया गया तो यह संविधान के संघीय ढांचे के लिए भी शुभ संकेत नहीं होगा।
देश इस समय जिस तरह की कठिन चुनौतियों का सामना कर रहा है उसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सौहार्द्र पूर्ण संबंधों की आवश्यकता है। दरअसल प्रधानमंत्री की बैठक में मुख्य सचिव की अनुपस्थिति तब निश्चित रूप से एक गंभीर मुद्दा बन सकती थी जबकि मुख्यमंत्री उन्हें बैठक में उपस्थित रहने का आदेश देतीं और वे उस आदेश की अवहेलना करते। केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव में मुख्य सचिव को निशाना बनाये जाने की यह घटना अभूतपूर्व है और अंतिम होनी चाहिए।पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस की प्रचंड विजय के बाद लगातार तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की बागडोर तो ममता बनर्जी ने अवश्य थाम ली है परंतु अगले पांच सालों तक केंद्र सरकार के साथ उनके संबंध कैसे रहेंगे यह संकेत अभी से मिलने लगे हैं। पहली बार राज्य की सत्ता पर काबिज होने की महत्वाकांक्षी भाजपा ने इन विधानसभा चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी । उसने दो सौ पार का जो नारा दिया था वह तृणमूल कांग्रेस के लिए फलीभूत हो गया और 294 सदस्यीय विधानसभा की मात्र 77 सीटों पर ही भाजपा के उम्मीदवार जीत सके। भाजपा के लिए यह प्रतिष्ठा की लड़ाई थी परंतु भाजपा के सारे दिग्गजों की फौज पर जब एक अकेली दीदी भारी पड़ गई तभी राजनीतिक पंडितों ने यह अनुमान लगा लिया था कि राज्य में लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी ममता बनर्जी को भाजपा और भाजपा नीत केंद्र सरकार अब चैन से नहीं बैठने देगी। ममता बनर्जी ने जिस दिन मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की उसी दिन से ये सिलसिला शुरू भी हो गया। ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के तत्काल बाद ही बाद राज्य पाल जयदीप धनकड़ ने उन्हें राज्य में चुनाव बाद भड़की हिंसा रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने की नसीहत देने में कोई संकोच नहीं किया। इतना ही नहीं राज्य पाल उन क्षेत्रों के लोगों की तकलीफों का जायजा लेने भी पहुंच गए जहां चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा आगजनी, लूटपाट और हिंसक वारदातों को अंजाम दिए के आरोप लगाए गए थे। राज्य पाल धनकड़ इसके पहले सीबीआई को ममता बनर्जी की सरकार के चार मंत्रियों के विरूद्ध भ्रष्टाचार के आरोप में मुकदमा चलाने की अनुमति दे चुके थे। यह भी आश्चर्यजनक बात थी कि राज्यपाल ने केवल उन्हीं उपद्रव ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया जहां तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद हिंसा, आगजनी और लूटपाट की वारदातों को अंजाम दिया।इतना ही नहीं , राज्य पाल अपने साथ भाजपा के सांसद को भी साथ ले गए लेकिन आश्चर्य तो तब हुआ जब राज्यपाल ने उन क्षेत्रों का दौरा करने की आवश्यकता महसूस नहीं की जहां भाजपा के कार्यकर्ताओं के ऊपर यह आरोप लगाए गए थे कि उन्होंने चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद लूटपाट, आगजनी और हिंसक वारदातों को अंजाम दिया । अगर राज्य पाल सभी उपद्रव गस्त क्षेत्रों का दौरा करते तो ममता बनर्जी को उन पर यह आरोप लगाने का मौका नहीं मिल सकता था कि वे तृणमूल कांग्रेस के प्रति पूर्वाग्रही दृष्टिकोण अपना रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिम बंगाल में प्रचंड बहुमत से विधानसभा चुनाव जीतने के बावजूद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राह आसान नहीं है परंतु केंद्र सरकार और उसकी मंशा के अनुरूप कार्य कर रहे राज्य पाल को इस हकीकत को नजरंदाज नहीं करना चाहिए कि पश्चिम बंगाल की जनता ने लगातार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में भरोसा जताया है । ममता बनर्जी की राह में अवरोध खड़े करना जनादेश का अपमान करने जैसा ही है।
कृष्णमोहन झा