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मास्क कितना जरूरी इसका फैसला होगा 15 जून को

भारत मे एक आरटीआई आवेदन में कोविड महामारी के दौरान मास्क के प्रभाव से संबंधित जानकारी मांगी गई थी, जिस पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोई जवाब नहीं दिया। केंद्रीय सूचना आयोग ने इस आवेदन को व्यापक जनहित वाला बताते हुए कहा कि मंत्रालय के अधिकारियों ने इसे एक से दूसरी जगह सिर्फ ट्रांसफर करके पोस्ट ऑफिस वाला काम किया है। मास्क संबंधी आरटीआई पर जानकारी न देने पर सीआईसी ने लगाई फटकार, कहा- घोर लापरवाही है।

पूरे देश वासी पिछले लॉकडाऊन से सुनते आ रहे हैं कि कोरोना से बचाव के लिए आम इंसान को मास्क पहनना अनिवार्य है जिसके लिए आम जन पर जुर्माना भी लगाया जा रहा है। परन्तु इस पर उस वक्त चौकाने वाला वाक्या सामने आया है जब इस विषय पर एक आरटीआई कार्यकर्ता ने आरटीआई लगाई। आपको जाकर हैरानी होगी जब देश कि राजधानी नई दिल्ली मे केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने कोरोना महामारी में मास्क के इस्तेमाल से संबंधित एक सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन पर जवाब न देने और इसे एक विभाग से दूसरे विभाग में ट्रांसफर करते रहने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को कड़ी फटकार लगाई है। आयोग ने मंत्रालय के आरटीआई सेल के अधिकारियों पर गहरी नाराजगी जताते हुए कहा कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में घोर लापरवाही बरती है।

26 मई 2020 को मैथ्यू थॉमस नामक एक व्यक्ति ने एक आरटीआई आवेदन दायर कर कोरोना महामारी के संदर्भ में पूछा था कि किस आधार पर पूरे भारत के लोगों के लिए मास्क अनिवार्य करने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने इस संबंध में स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा दिए गए सलाह, ऐसे दस्तावेज या मिनट्स ऑफ मीटिंग जो ये दर्शाते हो कि मास्क को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दिए गए सुझावों पर विचार किया गया था, ऐसा कोई दस्तावेज या बैठक का मिनट्स जो ये दर्शाता हो कि केवल मेडिकल मास्क से सार्वजनिक स्थानों पर लोगों की रक्षा हो सकती है और इसकी जगह पर स्कार्फ या रूमाल से बचाव नहीं होगा बल्कि संक्रमण का खतरा भी होगा, इत्यादि की प्रति भी थॉमस द्वारा मांगी गयी थी।

“थॉमस ने मंत्रालय से यह भी पूछा था कि ये निर्णय लेते वक्त क्या इस बिंदु पर विचार किया था कि भारत की आबादी के करीब 40 करोड़ गरीब लोग कैसे मेडिकल मास्क खरीद पाएंगे ?”

हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय से कोई जवाब नहीं मिलने पर आवेदनकर्ता ने तीन सिंतबर 2020 को प्रथम अपील दायर की, लेकिन यहां से भी कोई उत्तर न मिलने पर उन्हें सीआईसी का रुख करना पड़ा। बीते 25 मई 2021 को आयोग में हुई सुनवाई के दौरान मंत्रालय के विभिन्न अधिकारियों ने दलील दी कि चूंकि ये जानकारी उनके पास नहीं थी, इसलिए उन्हें अन्य विभाग को ट्रांसफर करना पड़ा था। जिसमे थोड़ा समय लग गया जानकारी आने तक।

इसे लेकर मुख्य सूचना आयुक्त वाईके सिन्हा ने कहा कि आरटीआई आवेदन को ‘बहुत लापरवाही’ के साथ डील गया है और ‘अधिकारी इसे एक विभाग से दूसरे विभाग में ट्रांसफर ही करते रह गए’ और आवेदनकर्ता को पूरी जानकारी नहीं दी गई। उन्होंने कहा, ‘अपीलकर्ता द्वारा आरटीआई आवेदन में व्यापक जनहित से संबंधित बहुत प्रासंगिक मुद्दे उठाए गए हैं।’
सिन्हा ने अपने आदेश में आयोग स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के आरटीआई सेल के अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर गहरी नाराजगी व्यक्त करतें हुए कहा है कि, जिन्होंने आरटीआई आवेदन को सिर्फ एक विभाग से दूसरे विभाग में ट्रांसफर करने के लिए पोस्ट ऑफिस की तरह काम किया है। उन्होंने कहा कि आरटीआई आवेदन को ट्रांसफर करने पर यह नहीं कहा जा सकता है कि ट्रांसफर करने वाला अधिकारी, सीपीआईओ के रूप में अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से पूरी तरह से मुक्त हो चुका है।
मामले की सुनवाई के दौरान आवेदनकर्ता मैथ्यू थॉमस ने कहा कि अभी भी स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर ये लिखा है कि ‘जिन लोगों को कोरोना के लक्षण नहीं है वे मास्क न पहनें और मेडिकल मास्क की जगह पर स्कार्फ एवं रुमाल नहीं लगाया जाना चाहिए क्योंकि ये हानिकारक साबित हो सकता है।’

थॉमस ने मांग की कि स्वास्थ्य मंत्रालय व्यापक जनहित से जुड़ी जानकारी स्वत: अपने वेबसाइट पर निरंतर प्रकाशित करे। इस पर सहमति जताते हुए वाइके सिन्हा ने कहा कि ‘आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 4(1) (सी) और (डी) के अनुसार सार्वजनिक पटल पर सही और सटीक जानकारी प्रकाशिक की जानी चाहिए ताकि लोगों को आरटीआई आवेदन दायर करने की जरूरत न पड़े।’

आयोग ने कहा कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की वेबसाइट पर कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए कई मानक संचालन प्रक्रियाएं (एसओपी) हैं, लेकिन इसमें कहीं भी विभिन्न प्रकार के मास्क की उपयोगिता और इनके लाभ के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है।

इस प्रकार सिन्हा ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के नोडल सीपीआईओ को अपीलकर्ता द्वारा उठाए गए बिंदुओं पर उपलब्ध सही और सटीक जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि अधिकारी द्वारा संबंधित पीआईओ से जानकारी प्राप्त की जानी चाहिए और फिर इसे मंत्रालय की वेबसाइट पर स्वतः ही प्रकाशित किया जाए। आयोग ने अपील का निस्तारण करते हुए 15 जून तक अपने आदेश का अनुपालन करने का भी निर्देश दिया।
जरा सोचिए बिना जानकारी के कैसा नियम ? बिना शासनादेश के कैसे लागू ? जब शासनादेश कि ही जानकारी नहीं तो जुर्माना किस आधार पर लगाया जा रहा है ? टीवी पर लम्बे-लम्बे भाषणों के साथ मास्क पहनने की अपील कितनी सही होगी? आखिर क्यों देश कि भोली जनता को डर के माहौल मे जीने को मजबूर किया जा रहा है?

सरकार महज दावों के सहारे यह दिखाने की कोशिश में लगी है कि वह कोरोना के खिलाफ कारगर लड़ाई लड़ रही है। जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती नजर आ रही है। इससे अधिक विडम्बना हम भारतीयों के लिए और क्या हो सकती है। देश के किसी भी मेन स्ट्रीम कि मीडिया मे आपको यह खबर नजर नहीं आयेगी। क्योंकि यह सरकार की नाकामियों को उजागर करती है। गौरव विवेक भटनागर की इस खबर को विस्तृत तरीके से हमारे लेखक द्वारा आपके सम्मुख प्रस्तुत किया गया है …

राजकुमार सिंह

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