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अंकिता भंडारी और नरक बनता उत्तराखंड

सबसे पहले उस छोटी सी उन्नीस साल की बच्ची अंकिता की आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि उस बच्ची की आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे। मुझे ही नही आपको भी पता है इस घटना से भी हम सब लोगों की आंखें नही खुलेंगी। निर्भया हत्याकांड और अंकिता भंडारी की हत्या छोटी बच्चियों के मां बाप को भी जीते जी मार डालने वाली घटनाएं है। क्या होता है राज्यमंत्री ? एक छुटभईया जिसको उसकी पार्टी या उसका विधायक /मंत्री इस बात का ईनाम दिलवाता है कि उसने कितने पोस्टर लगवाए, कितने की शराब बंटवाई और कितने बस्ते बांटे जिसको ये नामुराद चुनाव प्रबंधन की संज्ञा देते हैं।

धिक्कार ही तो है हम सब लोगों को जो मैं भी चौकीदार की प्रोफाइल पिक्चर तो लगा ली लेकिन उधर एक चौकीदार और उसके रंगीन मिजाज छोटे चौकीदार बेटे ने एक छोटी सी बच्ची की जान ले ली। कैसी चौकीदारी है यह जिसमें तुम अपनी ही बेटी और बहन को नही बचा सकते ? थू है ऐसे ही सैकड़ों हजारों अवैतनिक चौकीदारों पर।

याद करो वह घटना जिसमें एक तथाकथित पार्टी के तथाकथित संगठन मंत्री की कारगुजारियां खुली तो पार्टी शर्मसार होने के बजाय कह रहीं थी की उनकी भी कुछ “नीड” हैं। इसी पार्टी के विधायक महेश नेगी के केस का क्या हुआ किसी को है पता ? इसी पार्टी के एक रंगीन मिजाज पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जिसकी उम्र दादा जी की है का गर्म ऑडियो वायरल हुआ और तब भी बुढ़ऊ को जिताया तुम लोगों ने ? शर्म नही आई थी तब जिंदाबाद करते हुए?

कैसे बिना रीढ़ के लोग हो यार ? नौकरियां तुम्हारी हाकम , उसके आका प्रेमचंद , कुंजवाल , कपूर ,पंत खा गए लेकिन तब भी शर्म नही आई ? लगे रहे अपने नेता के सुसु मुत्तु करने के पोस्टर भी रिसपना पुल और यमुना कॉलोनी चौक पर लगाने में ?

जब कुछ प्रदेश के युवा प्रदेश के नेताओं के कारनामे उजागर करने में लगे थे तुम तब भी अक्षय कुमार , कंगना रनौत, आमिर खान के मुद्दे पर लोगों को भटका रहे थे ?
क्या हुआ ? अब सांप सूंघ गया ?
हद्द है भाई ll

उफ्फ अब सहन नही होता !!
एक बेटी का पिता हूं इसलिए कहता हूं इनको और मारो और ऐसे ही किसी रिजॉर्ट में चाहे शिवपुरी हो, तपोवन, ऋषिकेश देहरादून, श्रीनगर या कोई और शहर अगर ऐसी घटना कहीं सुनाई दे तो चुप नहीं रहना खुल के तुड़ाई करना। कांड करके जब नेता और उसका बेटा बच सकता है तो पिटाई ही अब एक हथियार है इन लोगों के लिए। सारी शराफत दिखाने का ठेका क्या हमने अकेले ले रखा है ?
अहिंसा परमो धर्मः अब मूर्ति तक ही सीमित है तो वहीं रहने दो।

सुरेश लक्ष्मीनारायण